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________________ २. हस्तलिखित ग्रन्थभंडारों की सूचियों का निर्माण नाहटाजी ग्रन्थभण्डारों की छानबीन कर के नये ग्रन्थों और नयो प्रतियों को प्रकाश में ही नहीं लाये किंतु रातदिन परिश्रम करके उनने अनेकों भंडारों के ग्रन्थों की विवरणात्मक सूचियाँ भी प्रस्तुत की। ३. अभयजैन ग्रन्थालय नाम से हस्तलिखित ग्रन्थों के विशाल भंडार की स्थापना अपने स्वर्गीय बड़े भ्राता अभयराजजी नाहटा को स्मृति में अभय जैन ग्रंथालय और अभय जैन ग्रंथमाला की स्थापना की गई। अपने साहित्यिक जीवन के आरंभ से ही नाहटाजी ने हस्तलिखित प्रतियों की खोज और संग्रह के काम का श्रीगणेश कर दिया था। धीरे-धीरे उनके ग्रंथालय में लगभग पैंसठ हजार हस्तप्रतियों का संग्रह हो गया । ये ग्रंथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, पजाबी, काश्मीरी, कन्नड़, तमिल, अरबी, फारसी, बंगला, अंग्रेजी, उड़िया, आदि विविध भाषाओं के और विविध विषयों के है । अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण होने के साथ-साध दुर्लभ भी हैं। अनेक ग्रंथ तो अन्यत्र अलभ्य ही हैं। इनके अतिरिक्त मध्यकालीन और उत्तरकालीन पुरालेखों (विविध प्रकार के दस्तावेज, पत्र, व्यापारिक पत्र, पट्ट-परवाने, बहियाँ आदि कागजपत्रों) का बडा भारी संग्रह ४. अभय जैन ग्रन्थालय के अंतर्गत मुद्रित पुस्तकों का संग्रह इसमें शोधकार्य के लिए आवश्यक संदर्भ-ग्रंथों, और शोधोपयोगी प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व, कला, साहित्य आदि विविध विषयों की पुस्तकों का बहत संग्रह है। ग्रन्थों की संख्या ४५ हजार से ऊपर है। उक्त दोनों ही लक्षाधिक ग्रंथों के संग्रहों से शोध-विद्वान् और शोध-छात्र भरपूर लाभ उठाते हैं । ५. पत्र-पत्रिकाओं की पुरानी फाइलों का संग्रह अभय जैन-ग्रन्थालय में विविध विषयों की पत्र-पत्रिकाओं की, विशेषतः शोधपत्रिकाओं की, पुरानी फाइलें बड़े परिश्रम के साथ प्राप्त करके संगृहीत की गयी हैं। ये फाइलें शोध-विद्वानों के बड़े काम की है क्योंकि साधारणतया पत्रिकाओं के पुराने अंक सहज ही प्राप्त नहीं होते। ६. शंकरदान नाहटा कलाभवन की स्थापना नाहटा जी अद्वितीय संग्राहक है, उन्होंने अपने पिताश्री की स्मृति में एक महत्त्वपूर्ण कलाभवन की स्थापना की। इसमें प्राचीन चित्र, मूर्तियाँ, सिक्के आदि, छोटी-बड़ी कलाकृतियों तथा अन्यान्य संग्रहणीय वस्तुओं का अच्छा संग्रह किया गया है। व्यक्तिगत संग्राहलयों में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय है । ७. विविध विषयों पर ४००० से ऊपर शोधपरक एवं अन्यान्य निबंधों' का लेखन और प्रकाशन इन निबंधों की क्षेत्र-सीमा बहुत विस्तृत है। उनमें विभिन्न भाषाओं के विभिन्न ग्रंथकारों और उनके ग्रंथों, तथा पुरातत्त्व, कला, इतिहास, साहित्य, लोक साहित्य, लोक-संस्कृति आदि विविध विषयों के विभिन्न पक्षों पर नयी-से-नयी जानकारी दी गयी है। इस निबंधों को मुख्यतया चार विभागों में बांटा जा सकता है १. पुरातत्त्व, कला, इतिहास । १. इन निबन्धों की सूची शीघ्र ही प्रकाशित की जायेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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