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________________ हैं। उन्होंने मेरे समान सैकड़ों शोधार्थियों का मार्ग-दर्शन किया तथा अनेक व्यक्तियोंको आवश्यक जानकारी व सामग्री प्रदान कर उपकृत किया है । वे अनुसंघित्सुओंके प्रेरणा-स्रोत हैं । गम्भीर व्यक्तित्ववाले श्री नाहटाजी बड़े शान्त, सरल, मिलनसार एवं सहृदय व्यक्ति हैं । अपनी धार्मिक मान्यताओंके प्रति वे आस्थावान हैं किन्तु संकीर्णता उनमें लेशमात्र भी नहीं है । वे मौन साधक हैं । आडम्बर उन्हें पसन्द नहीं । प्रचार और यशसे दूर रहकर एकान्तभावसे कार्य करना उनका उद्देश्य है । वे अन्वेषण - कार्यके भीष्म पितामह हैं । श्री नाहटाजी मुख्यत: व्यापारी हैं। अपने व्यावसायिक कार्यों में संलग्न रहते हुए भी वे साहित्यिक तथा सांस्कृतिक कार्यों के करने में पूर्ण रुचि लेते हैं । वे अपने व्यापारिक कार्योंसे कैसे अवकाश निकाल पाते हैं, जब इस तथ्य पर विचार करता हूँ, तो आश्चर्य होता है । विद्यालयी शिक्षा नहींके बराबर होते हुए भी श्री नाहटाजीने अपने विद्या-प्रेम और अध्यवसायसे उच्चतम योग्यता प्राप्त की है। उन्हें श्री और सरस्वती दोनोंकी कृपा प्राप्त है। उनकी प्रतिभा बहुमुखी और उनका कृतित्व परिमाण बहुल है । वे ४० वर्षों से साहित्य-साधना में रत हैं। उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित ग्रंथोंकी संख्या लगभग ५० है और पचासों ही ग्रन्थोंकी उन्होंने भूमिकाएँ लिखी हैं । उनके विविध विषयोंपर विशेषकर शोधपरक लगभग ३००० लेख देशकी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । लक्षाधिक हस्तलिखित प्रतियोंकी खोज कर अनेक अज्ञात ग्रंथोंके विवरणोंको वे प्रकाशमें लाये हैं । हस्तलिखित प्रतियोंकी खोज करना और अज्ञातग्रंथों को प्रकाश में लाना उनका विशिष्ट कार्य है । वे अपने दायित्व के प्रति सतर्क हैं । इसीलिए वे ग्रन्थों तथा लेखकोंकी त्रुटियोंका संशोधन तथा परिमार्जन समय-समय पर करते रहते हैं । अनेक ज्ञानभंडारोंकी हस्तलिखित प्रतियोंकी आवश्यक विवरणों सहित सूचियाँ उन्होंने बड़े परिश्रम तथा लगनके साथ तैयार की हैं, जो शोधकार्यके लिए विशेष सहायक हैं । 'श्री अभय जैन ग्रन्थालय' तथा 'शंकरदान नाहटा कला भवन' उनके विद्याप्रेम, कला- अभिरुचि तथा संग्राहकवृत्तिके कीर्ति स्तम्भ हैं । उनका लेखन - कार्य अत्यन्त त्वरा गतिपूर्ण है । श्रद्धेय नाहटा बन्धुओं की षष्ठिपूर्तिके शुभ प्रसङ्गमें उनकी अप्रतिम साहित्य साधना और अमूल्य सेवाओंके उपलक्ष्य में इस विद्वद्-पूजनके पवित्र अनुष्ठानका आयोजन सर्वथा उचित है । इस अवसरपर मैं नतमस्तक होकर उनका अभिनन्दन करता हूँ । प्रभुसे प्रार्थना है कि वे शताधिक वर्षोंतक हमारे बीच रहकर हम सबका मार्ग-दर्शन करते रहें । प्रबुध चमकते जैन सितारे : श्री अगरचन्दजी नाहटा श्री विमल कुमार रॉका, श्री अगरचन्दजी नाटाका नाम जैन जगत् में एक उज्ज्वल नाम है। जैन जगत्का पढ़ा लिखा ही नहीं बल्कि अनपढ़े लोग भी उनके नामसे भलीभाँति परिचित है । अवश्यमेव यश गाथा तो जरूर गायी हो जानी चाहिए। हमने देखा है कि समय-समय पर लोगोंने ३५८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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