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________________ यस्य जीवन्ति धर्मेण पुत्रमित्राणि बान्धवाः । सफलं जीवितं तस्य, नात्मार्थे को हि जीवति ॥ सेठ शंकरदानजीके द्वितीय पुत्र-स्वनामधन्य-अभयराजजी । संवत् १९५५ की चैत्र कृष्णा ६ को अभयराजजीका जन्म हुआ। स्वर्गीय अभयराजजी जैसे पुत्ररत्न विरले ही होते हैं। उन्होंने अपनी विनयशीलता, नम्रता, सज्जनता, वाग्मितासे सबको मग्ध कर किया था। वे परम धार्मिक, गहरे विचारक, धैर्यके धनी, उत्साही, अध्ययनशील और सुधारवादी सामाजिक कार्यकर्ता थे । वे अनेक संस्थाओं के संस्थापक और सचिव रह चुके थे। सभा-सम्मेलनों और विचारगोष्ठियोंसे उन्हें हार्दिक अनुराग था। वे सर्वथा महामानव बननेके पूर्वरूप थे, सब कुछ तदनुरूप था, लेकिन उनका आयुष्य दीर्घ नहीं था। इसलिए युवावस्थाके प्रारम्भमें ही संवत् १९७७ मिती वैशाख कृष्ण सप्तमीको रोते बिलखते परिवारको छोड़कर आप विकराल कालके शिकार बन गए। आपका यह दुःखद निधन जयपुरमें हुआ था। पिताजी-माताजी एवं सारे परिवार पर वज्राघात-सा हो गया वे जीवनपर्यन्त इस पुत्रके गुण प्रकर्षको विस्मृत न कर सके और वेदना अनुभव करते रहे। उन्होंने माताकी अश्रुधारा देखकर सांत्वना देने के लिए स्वर्गसे प्रकट होकर परिजनोंको साहाय्य करनेका वचन दिया। श्री अभयराजजीकी धर्मपत्नीका भी स्वर्गवास तीन वर्ष बाद हो गया। आपके एकमात्र सन्तान चम्पाबाई है । श्री अभयराजजीका संक्षिप्त परिचय अभयरत्नसार नामक ग्रंथमें प्रकाशित किया गया है, यह ग्रन्थ आपकी स्मृतिमें प्रकाशित हुआ था। आपके पूज्य पिता श्री शंकरदानजी नाहटाने आपकी स्मृतिमें श्री अभय जैन ग्रंथमालाकी स्थापना की और इसके अन्तर्गत जनहितकी दृष्टिसे प्रकाशन कार्य प्रारंभ किया गया। विश्वविश्रुत, अप्राप्य, दुर्लभ, हस्तलिखित ग्रन्थोंका आकर "श्री अभयजैन ग्रन्थालय" की स्थापना भी आपके नामपर ही की गई। सं० १९५८ में श्री शुभैराजजीका जन्म हुआ। आप बड़े साहसी और व्यापार-विदग्ध हैं। सं० १९६० में मगनकुँवर, सं० १९६२ में मोहनलाल, सं० १९६५ में श्री मेघराज और सं० १९६७ मिती चैत्र कृष्णा चतुर्थीको स्वनामधन्य हमारे चरित-नायक श्री अगरचन्दजी नाहटाका जन्म हुआ। इस प्रकार श्री शंकरदानजी नाहटाके छः पुत्र और दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई, जिनमें सोनकुँवर, अभयराज और मोहनलाल आपकी विद्यमानतामें ही स्वर्गवासी हो गए। सं० १९६८ की आश्विन कृष्ण द्वादशीको आपके ज्येष्ठ पुत्र श्री भैरूंदानजीके घर भंवरलाल नामक पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। श्री भंवरलालजी नाहटा साहित्य संसारके विश्रुत विद्वान हैं । आपने अनेक ग्रन्थोंका सम्पादन, लेखन और प्रकाशन किया है। आप प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, बंगला, गुजराती, राजस्थानी प्रभृति भाषाओंके ज्ञाता और कवि हृदय है । हमारे चरित-नायक श्री अगरचन्दजी नाहटाको आपका सर्वविध सहयोग उपलब्ध है। आपकी रुचि साहित्योन्मुखी है। श्री शंकरदानजी नाहटाके अनेक पौत्र, पौत्रियाँ, दोहिता, दोहिती-प्रपौत्र और प्रपौत्रियाँ उत्पन्न हुई। इस प्रकार संतान, सरस्वती और लक्ष्मीकी दृष्टिसे आप अपने जीवनकालमें अत्यन्त समृद्ध बन गए। - पूज्य पुरुषों व हर मनुष्यकी सेवा करना श्री शंकरलालजी नाहटाका जन्मजात गुण था। वे इस पुण्यकार्यमें कभी आलस्य एवं प्रमाद नहीं करते थे। अपने पूज्य माता-पिताके अतिरिक्त अपने चाचा, बड़े भाई, भौजाइयाँ-आदिकी महती सेवा कर उनका जो आशीर्वाद प्राप्त किया, वह सबके लिए प्रेरणाप्रद और १६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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