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________________ उनका अभय जैन ग्रन्थालय एक तीर्थस्थली है । तीर्थो की संगमस्थली कहूँ तो भी अत्युक्ति नहीं होगी क्योंकि उस तीर्थ में जैनधर्मकी विशाल सरिता तो प्रवाहित होती ही है, साथमें अन्य धर्मोकी कई नहरें भी देखनेको मिल जाती हैं । श्रीनाहटाजीको उदार भी कहा जा सकता है और अनुदार भी । अविश्वासकी जरा सी झलक भी उन्हें कंजूस कर देती है परन्तु यदि आपने उनका विश्वास प्राप्त कर लिया है तो वे खजानेकी 'कूची' तक देने में एक पल भी नहीं हिचकेंगे । मेरा सम्बन्ध उनसे काफी पुराना है । वस्तुतः राजस्थानी भाषाके लेखनके प्रति मुझे जो सम्मान हुआ, वह अत्यधिक रूपसे श्री अगरचन्दजी नाहटाकी ओरसे ही मिला है । वैसे मुझे कुरेदने में राजस्थानी साहित्य स्रष्टा श्री मुरलीधर व्यासजी भी कम नहीं रहे किन्तु श्री नाहटाजीका सहयोग इसलिए स्तुत्य है कि उन्होंने मेरी रचनाओंके प्रकाशनका भी भार वहन करनेका आश्वासन दिया था। श्री नाहटाजीने राजस्थानी भाषा निर्माण और परिष्कृत करने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । श्री नाहटाजीका जीवन एक संयमीका जीवन है । विलासी जीवनसे दूर एक नियमित जीवन । कब व्यापार करना है और कब अन्वेषण व ग्रन्थ संग्रह करना है, उन्होंने इस हेतु वर्षका विभाजन कर रखा है । इतना ही नहीं, अपने समस्त कार्यकलापोंको रोककर श्रीनाहटाजी शोध-कर्त्ताओंको प्राथमिक सहयोग देते हैं । शोधकर्ताओंके लिए श्रीनाहटाजीको एक कोष भी कह दें तो अत्युक्ति नहीं होगी। वर्षोंकी पुरानी पत्र-पत्रिकाओंकी सूचियाँ उनके मस्तिष्क में 'अल्फाबेटिक' ढंगसे मानों लगी हुई हैं । कौन-सी पुस्तक कौन सी जगह है, उसमें आपके विषयसे सम्बन्धित सामग्री कौनसे अध्यायमें है, यह भी आपको श्रीनाहटाजी बता देंगे । श्री नाहटाजी लोक-साहित्य, प्राचीन विधियाँ व जैन साहित्य के ज्ञाता हैं । जैन परिप्रेक्ष्यमें प्राचीन ग्रन्थों व संदर्भोंको देखने और उनको अन्वेषित करनेमें वे कठोर श्रम करते हैं । यही कारण है कि श्रीनाहटाजी द्वारा काफी जैन साहित्य प्रकाशमें आया है । श्रीनाहटाजी राजस्थानी हैं, पक्के राजस्थानी । राजस्थानी भाषाके प्रेमी हैं और राजस्थानी पहनावा भी पहनते । कहीं भी जायेंगे पर मरुधराको शान 'पगड़ी' को सिर पर रखे बिना नहीं जायेंगे । इसीलिए वे एक राजस्थानी के रूप में पहचाने जाते हैं । पुराने मूल्योंसे प्रतिबद्ध श्रीनाहटाजी लिखित कर रहे हैं, उनके लिये उन्हें राजस्थानका प्रचंडकर्मी कहें तो भी योग्य वरद पुत्रको पाकर गौरवान्वित है । अलिखित ग्रंथ संग्रहका जो महान् कार्य अतिशयोक्ति नहीं होगी । राजस्थान ऐसे जैन इतिहास-रत्न शोधशास्त्री श्रीअगरचन्द नाहटा श्री मोहनलाल पुरोहित महापुरुष, और ये कलाकार, साहित्यकार, मनीषी - विद्वान् आदि प्रतिभा के धनी तो होते ही हैं, साथ ही ये लोग भगवान् के घरसे दैवी शक्ति लेकर इस धरापर अवतीर्ण होते हैं । इनका दैनिक जीवन और क्रियाकलाप अपनी विचित्रताओंसे भरा हुआ रहता है। त्याग तपस्या, सदाचार, संयम, परोपकार, पर- दुःखकातरता, ४३ व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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