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इसा महापुरसांने जलम देय र भूमी धन-धन हुई है ।
म्हारी मोकळी आसीस है के श्री नाहटाजी, दीर्घायु, शतायु अर चिरंजीवी रैय 'र, आपरं पांडित्य अर संत पण सूं मान खेरी सेवा करता वै । इणी मंगळमयी कामना रं सागै हूँ, म्हारी लेखणीने विसराम देवं हूँ ।
मां राजस्थानी रा समरथ सपूत नाइटोजी
श्रीलाल नथमलजी जोशी
इतिहास बताने के झुंपड्यांमें रतन जलमै गढामें सूरमा अवतरै अर हवेल्यां में बोपारी सेठ पैदा हुवै । इसा अपवाद जोयां भी नीठ लाघसी के हवेलीमें, लिछमीजी रै घरमें कोई सरस्वती रो पूत जलमग्यो हुवें । लिछमी र घरमें जलम लेबण कारण सरस्वती ने काई पड़ी के वा टाबर री देख-रेख करें ? नतीजो ओ हुयो के सरस्वती ₹ मिंदरमें टावर से प्रवेश ई नई हुयो । अर जे हुयो; तो खाली नांव रो । सरस्वती री तरफ सूं छिटकायोड़ो देख्यो, तो लिछमी उण टाबर नै थपथपायो - आ बेटा, तू क्यू धबरावे ? थारी मां तनै नई लड़ावै, तो कोई बात कोनी, हूँ भी थारी मां हूँ, म्हारे घर तें जलम लिथो है | जद लिछमी टाबर नै आपरी छत्तर छैयांमें लेवण लागी. तो सरस्वती ने कद बरदास हुवतो ? बा बोली – क्यूं बैन, पारका पूत कियां खोसण लागगी ? लिछमी कैयो - थारो अंतराज तो ठीक है, पण म्हारे घरमें जायोड़े माथे कीं तो म्हारो ई अधिकार हुवैलो ?
आमतौर सूं लिछमी अर सरस्वती आपस में झगड़ो ई राखे, आपस में समझो तो कदमकाल ई करें, पण इण मौके सुमत सूझी। लिछमी बोली - "बेटो तो थारो है, पण अंगरचंद मइनां खातर म्हारी हाजरी में तु भेजती वै, तो फेर मनै कोई अंतराज कोनी । बारं मइनांमें नव मइना थारा, तू मां है, लारला तीन मइना म्हारा सरस्वती अँकर तो विचार में पड़गी, फेर उदारता बरततां हंकारो भर लियो ।
लिछमीजी 'टुरण लाग्या । वांरी जीभ माथै अ सबद उथळीजता हा - "अगरचन्द मइनां, अगर चन्द, अगर चन्द ।” बांनै ध्यान आयो अर सरस्वती नै कैयो, आपांरै करार ने तू भूल नई जावे, इण कारण इरी नांव हूँ थरपसु - अगरचन्द | अगर अर चन्त्रण ज्यू आपरी मैक सूं वातावरण खुसबू फैलावे, इणी तर थारो औ लाल आपरी कोरत दिग्दिगंत में फैलासी, पण बीस बरसां री ऊमर पायां अगर में रस भरीजे, इण कारण अगरचन्द री कीरत भी बीस बरसा रो हुयां फैलणी सरू हुवैली ।"
बीकानेर र धनी-मानी सेठ संकरदानजी नाहटै री सं० १९६७ री चैत बदी ४ ने हुयो । बां दिनां बीकानेर में ठाकुर ज्यू इस्कूली पढाईमें ही टाबर नाहटै री पढाई पुर्ण हुणे किलांस सूं आगे नई चाल सकी । उण जमाने में साधारण काम चलावण सारू पांच किलास अंग्रेजी रो ग्यान भी काफी हो, घर रा कारबार हुवण र कारण नोकरी तो जोबणी ही कोनी ।
धरमपत्नी श्रीमती चुन्नीबाई री कूख सूं सरकारी मदरसा तो हा, पण रवीन्द्रनाथ जोग नई : इणी कारण बा पढाई पांचवीं
इस्कूल तो छूटगी, पण आपर मनमें ग्यान री जिकी भूख ही, बा भी बुझगी हुवै, आ बात कोनी वा तो दिनू ड़े दिन बधती ई गई । इण कारण आप साहित्यिक अर सामाजिक अनेक विषयां री पीथ्यां
३२२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन - ग्रंथ
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