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________________ विद्या-व्यसनी, शोध-अधिकारी सचमुच धन्य हैं जिनका सम्पूर्ण जीवन ही साहित्य-साधनामें लगा हुआ है । माँ सरस्वतीके प्रति गहननिष्ठा और गम्भीर चिन्तनके कारण ही ऐसा संभव है । इनकी विद्वत्ता, आत्मीयता, स्नेहशीलता और सहयोग-भावनाके कारण प्रतिवर्ष मह-प्रदेश, बीकानेरकी साहित्य-सरितामें स्नान करके अनेक शोध-यात्री कृतकृत्य हो उठते हैं। लगभग एक सप्ताह नाहटाजीके सानिध्य-सम्पर्क में रहना पड़ा। इस प्रथम भेंटका मुझपर इतना प्रभाव पड़ा कि मेरा मन पुनः पाण्डित्यसे लाभान्वित होनेके लिये उद्विग्न हो उठा। तत्पश्चात् निरन्तर पत्राचार होता रहा। २५ नवम्बर १९६७ ई० को दो सप्ताहके लिए शोध-सामग्री हेतु फिर बीकानेर जाना पड़ा। इस बार विषय 'बगड़ावत'से बदलकर "राजस्थानी-वीराख्यान" ले चुका था। इसके चुनावका श्रेय भी मैं श्रद्धेय नाहटाजी को देता है। प्रथम भेंटमें वे अपना स्पष्टवादी दृष्टिकोण व्यक्त न करते तो ऐसा नहीं हो पाता। इसका मुझे बड़ा सन्तोष है चिरकाल तक इनका ऋणी रहूँगा। यात्राके दौरान आपने आग्रह किया, "मेरे यहाँ ठहर जाओ, तकलीफ उठानेकी जरूरत नहीं।" मैंने मन ही मन इनकी उदारता, आत्मीयता और कष्टसाध्यस्थितिके ज्ञान की प्रशंसा करके इनकार कर दिया। मेरे पास एक कैमरा भी था। अतः संकोचके साथ एक दिन इनसे फोटो खिंचवानेकी इच्छा प्रकट की और वे सहमत हो गये । दूसरे दिन १० बजे सायंकाल उनकी तिमंजली इमारतपर फोटो उतारी किन्तु अकेले नहीं जीवनसंगिनी सहधर्मिणी श्रीमती पन्नी देवीके साथ । गौरवर्णकी लगभग ६० वर्षीय हंसमुख मुद्राको सामने देखते ही मैं श्रद्धावनत हो गया । सुन्दर साड़ी और स्वर्णाभूषणोंसे सुसज्जित यह नारी लज्जा, उल्लास और उत्साहसे परिपूर्ण थी । इसी बीच शृंगारमंडित उनकी पुत्रवधू भी आ पहुँची । पुत्रवधूके साथ ही सुपुत्री, पुत्र विजयचन्द और दोहित्र प्रकाशके 'पोज' लिए। तभी बड़े पुत्र धर्मचन्दजी आ पहुंचे । मैंने हंसकर नाहटाजीकी पुत्रवधू को पतिदेवके साथ एक 'पोज' पुनः देने को कही। हंसते हुए वे दम्पति कुसियो पर बैठ गये। इस प्रकारके वे फोट कभी-कभी अनायास ही नाहटाजीके स्नेह, आत्मीयता और कर्मठताकी याद दिला देती है। खेद है कि इस साधक की साधनाका मूल्यांकन करके किसी विश्वविद्यालयने आज तक इसे उपाधियोंसे विभूषित नहीं किया। हजारों पाण्डुलिपियोंके संरक्षक, हजारों लेखोंके रचयिता, हजारों चित्रों-सिक्कोंके संग्रहकर्ता, सच्चे शोध-अध्येता, शोध निर्देशक और साहित्यसाधक नाहटाजी को ईश्वर दीर्घायु करके 'जीवेम शरदः शतम्'की उक्तिको चरितार्थ करें। व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : ३०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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