________________
नाहटाजी राजस्थानके अधिवासी हैं और इनकी वेशभूषा भी सीधी-सादी मारवाड़ी है। इन्हें राह चलते देखकर किसीको भी यह न लगेगा कि ये इतने बड़े विद्वान और सुप्रसिद्ध लेखक हैं। नाहटाजीकी वेशभूषा बिल्कुल सादी है । कपड़ोंकी सजधजके पीछे वे समय बर्बाद नहीं करते। कभी-कभी तो मुसाफिरोमें कपड़े मैले हो गये हों तो भी वे उनकी न तो पर्वाह करते और न संकोच ही रखते।
नाहटाजीकी जैसी सादी बेशभूषा है वैसे ही उनका स्वभाव भी अत्यन्त सरल है। खाने-पीने या रहन सहनके बाबत ये किसी खास वस्तु का शौक या आग्रह नहीं रखते । एक बार मेरे यहाँ बम्बईमें नाहटाजी पधारे। प्रातःकाल उठते ही एक कार्यक्रममें जाना था. वे नवकारसी या पौरसी करते थे इसलिए बिना खाये पिये ही हम चले गये। उस कार्यक्रममें विलम्बसे छटी मिली, वहाँसे श्री महावीर जैन विद्यालयके कार्यक्रममें और भोजनके लिए हमारे यहाँ जाना था। मैंने नाहटाजीसे कहा कि घरपर चाय-पानी करके फिर अपने विद्यालयके कार्यक्रय में जावें । परन्तु नाहटाजीने यह स्वीकार नहीं किया। उस दिन लगभग १॥ बजे मध्याह्नमें भोजन मिला फिर भी वे आकुल या अस्वस्थ हों ऐसी बात नहीं थी वे तो जैसे थे वैसे ही प्रसन्न थे।
नाहटाजी अपने कामोंमें बहुत नियमित होते हैं और अति शीघ्रतापूर्वक कामको निपटाते हैं । प्रतिदिन प्रातःकाल वे जल्दी उठकर सामयिक करने लगते हैं और सामयिकमें बहत-सा अध्ययन मनन कर लेते हैं। अपने लेखन योग्य अध्ययन मनन भी सामायकके समय कर लेते हैं। एकबार मेरे यहाँ नाहटाजी पधारे तब पाँच बजे उठकर उन्होंने सामयिक ले ली । लाइटका स्विच कहाँ है यह इन्हें पता नहीं। अचानक मेरी आँख खुली तो देखा कि नाहटाजी सामयिक लेकर बैठे हैं और अन्धेरेमें हो पुस्तक पढ़ रहे थे। ग्रीष्मकाल था अतः साधारण प्रकाश हो गया था। नाहटाजी बराबर आँखके पास पुस्तक रख कर पढ़ रहे थे। यह दृश्य देखकर लगा कि वास्तवमें नाहटाजी धन्यवादाह हैं।
नाहटाजीका अधिकांश लेखन कार्य इनकी सामायिकके बदौलत है। सामाजिक या साहित्यिक क्षेत्रमें उच्चतर स्थान प्राप्त व्यक्तिको लेखन कार्यमें बहतसे विक्षेप पड़ जाते हैं, कुटुम्बके सदस्योंको तो बाधा देनेका अधिकार हो सकता है पर मित्र, सम्बन्धी, मिलने-जुलनेवाले, संस्थाके कार्यकर्ता अपनी अनुकुलतानुसार चलते हैं जिससे भी लेखन कार्यमें विशेष पड़ना स्वाभाविक है परन्तु सामायिक एक इसका अच्छा उपाय है । स्वर्गीय मोतीचन्द कापडियाने अपना अधिकांश लेखन कार्य सामायिकमें ही किया था, इसी प्रकार नाहटाजीके लेखनकार्यमें भी इनकी सामायिककी बहुत बड़ी देन है।
नाहटाजी बम्बई आते हैं तब इनके बिस्तरमें कपड़ोंकी अपेक्षा पुस्तकें ही अधिक होती हैं। कितनी ही पुस्तकें ये दूसरोंको देने के लिये ले आते हैं और बम्बईसे जाते समय कितनी पुस्तकें इनके खरीद की हई और और कितनी ही इन्हें भेंट मिली हुई होती हैं, इससे विदित है कि इनका विद्या प्रेम कितना अधिक है।
नाहटाजी गृहस्थ हैं, परन्तु इनके हृदयमें वैराग्यका रंग गहरा-गहरा लगा हुआ है। कदाचित ऐसी अनुकूलता मिली होती तो नाहटाजीने लघुवयमें दीक्षा ले ली होती । वे पूज्य० स० भद्रमुनिके गाढ सम्पर्कमें आये थे और उनके उपदेशोंका नाहटाजीपर बहुत बड़ा असर पड़ा था । पू० भद्रमुनि हम्पीमें स्थिर हुए उसके बाद नाहटाजी पू० भद्रमुनिको वन्दनार्थ बारम्बार हम्पी जाते थे। .
नाहटाजी गृहस्थ हैं, फिर भी कमाने की इन्होंने कोई खास पर्वाह नहीं की। पूर्व के पुण्योदय से इनका अच्छा व्यापार चलता है और इनके भाई व इनके पुत्र व्यापार संभालते हैं । परन्तु जवानी में भी नाहटाजीने वर्षमें चार महीना व्यवसाय और आठ महीने स्वाध्याय व लेखन कार्य में व्यतीत करने की योजना बना ली। इसी योजना के कारण ही एक संस्था द्वारा कार्य हो सके जितना कार्य अकेले हाथों से लेखन कार्य किया है। नाहटाजी के रस का विषय तो ग्रंथ और सामायिक है। वे अपने (रुचिकर) विषय के ग्रन्थ कहाँ-कहाँ से
व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org