SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खोजमें अनवरत अपनेको लगानेवाला यही व्यक्ति है। उनकी पगड़ी-धोती-कुरता-सादा कोट उन्हें सीधे रूपमें एक व्यावसायिक व्यक्ति प्रगट करेगा न कि कोई उच्चकोटिका साहित्य-प्रेमी। उनका बाल्यकाल व शिक्षा बीकानेर नगर में ही हुई। उनका परम्परागत व्यावसायिक धन्धा है। तदर्थ उनका आवागमन कलकत्ता आदि भारतके प्रमुख और औद्योगिक नगरोंमें भी होता रहता है । आरम्भसे ही उनमें साहित्य अनुशीलनकी अभिरुचि थी-वही अभिरुचि काल पाकर विकसित होती गयी जिसने आगे चलकर उन्हें प्राचीन साहित्यकी सेवाके लिये तत्पर किया। आपका स्वभाव अत्यन्त सरल तथा कोमल है। नम्रता तो आपमें कूट-कूटकर भरी हुई है। एक बार जो व्यक्ति आपसे मिल लेता है वह सर्वदाके लिए आपका हो जाता है । अहंकारका तो आपमें लेश भी नहीं है-सीधी-सादी भाषामें आपसे वार्ता करते हुए प्रत्येक व्यक्तिमें आपके प्रति आत्मीय भावना स्वतः ही बिना प्रयास घर कर लेती है । आपका द्वार सबके लिए समान रूपसे खुला रहता है। साधारणसे साधारण जिज्ञासु तथा बड़ेसे बड़े साहित्यिकके साथ मानवीय व्यवहारमें किसी प्रकारका भेद आपसे नहीं बनेगा। शोध छात्रोंके लिए आपका सहयोग सर्वदा सुलभ रहता है। साहित्य-प्रेमियों, साहित्य-लेखकों, सम्पादकों, साहित्य मर्मज्ञोंके लिए आपका घर उन्हींके घरके समान उपयोगमें आता है। समागत अतिथियोंका सम्मान भारतीय परम्परानुसार अत्यन्त सौहार्द्रपूर्ण भावनासे किया जाता है। आपका शान्त, विनीत, मृदुल स्वभाव हर अपरिचितको अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। आपके पूरे व्यक्तित्वका महत्त्व शब्दों द्वारा व्यक्त कर सकना शक्य नहीं है यही कहना पर्याप्त है कि आप महान् व्यक्तित्वके धनी हैं। साहित्य-साधना नाहटाजी का मुख्य विषय साहित्यसाधना है। वे पर्याप्त समयसे इसी कार्य में लगे हए हैं। उन्होंने इस लक्ष्यपूर्ति के लिए न मालूम कैसे-कैसे प्रयास किये व कठिनाइयोंसे संघर्ष किया है। जहाँ भी उन्हें ज्ञात हुआ कि अमुक जगह अमुक रचना प्राप्त है आप तभीसे उसके अवलोकन व पांडुलिपियोंके प्रयासमें लग जाते है । उस रचनाका वहाँ जाकर अवलोकन करते हैं। जिसके पास वह है उसकी प्रतिलिपिकी व्यवस्था करते हैं । आपके इस प्रयाससे अनेकों रचना-ग्रन्थ जो कि बिना जानकारीके किसी वसतेमें लिपटे संसारसे ओझल थे वे प्रकाशमें आये । वैसे आपने प्राचीन जैन साहित्यकी रचनाओंका अपने यहाँ अच्छा संग्रह किया है तथा उसके विवर्धनमें अब भी लगे हुए हैं। जैन साहित्यकी अनेक रचनाओं का सम्पादनकर उनको चिरजीवन प्रदान किया है। आपका "अभय-ग्रन्थागार" इसका उत्कृष्ट प्रमाण है कि आपको साहित्य साधनाका लक्ष्य कितना उच्चकोटिका है। आपके इस ग्रन्थागारमें न केवल जैन रचनाओंका ही संग्रह है अपितु इसमें सन्त-साहित्य-डिंगल-कवियों को रचनायें-प्राचीन ख्याति-तथा पिंगलकी रचनाओंका भी उपयुक्त संग्रह है। आपने जिस तरह जैन-साहित्यका सम्पादन कर उनको सुरक्षित किया उसी तरह अन्य साहित्यकी रचनाओंका सम्पादन कर उन्हें भी नवजीवन प्रदान किया है। इस सम्पादन कार्य के साथ-साथ आपने साहित्यिक प्रामाणिक पत्रिकाओं में शोधमय लेख भी लिखकर साहित्य सेवियोंको नई-नई जानकारी देने का कार्य भी जारी रखा है। आपके अनेकों लेख तो अनुपलब्ध साहित्य रचनाओंके परिचयात्मक विवेचन है जिससे रचनाकार-रचना तथा रचना कालका सम्यक् बोध प्राप्त होता है। आप वैसे राजस्थानके साहित्य-गगनके उदीयमान नक्षत्र ही नहीं हैं अपितु आप तो अब हमारे अंतः । भारतीय साहित्य जगतके साहित्यिकोंको उच्च श्रेणी में समाविष्ट हैं। राजस्थानकी वे सब संस्थाएँ जो साहित्यके संरक्षण, प्रकाशन व संग्रह कार्यमें संलग्न हैं आपके अनुभव व विवेकका पूरा-पूरा लाभ उठाने में सर्वदा तत्पर रहती हैं। आप राजस्थान प्राच्य विद्यामन्दिरकी समितिके सम्माननीय सदस्य हैं। वैसे ही आप साहित्य एकाडेमीके भी मान्य सदस्य हैं। इसी तरह जो-जो ऐसी अन्य संस्थायें हैं जो कि साहित्यिक कार्यमें व्यक्तित्व, कृतित्व एवं संस्मरण : २१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy