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________________ यद्यपि मुझे मेरे गुरुवरके वचनोंपर पूर्ण विश्वास था किन्तु फिर भी मेरे हृदयमें ऐसे महामनीषीके दर्शनों की उत्कट अभिलाषा जागृत हुई और गत वर्ष उनकी शोधशालामें, बीकानेर में जा दर्शन किये। चारों ओर पुस्तकोंका ढेर लगा है । पत्र-पत्रिकाओं की भीड़ मची है । एक ओर कोई टाइप-राइटर मशीन लिए बैठा है। कुछ छात्र अपने शोध प्रबन्धपर विचार-विमर्श करने हेतु बैठे हैं। और आप विराज रहे हैं मात्र दो वर्गफुट की साधारण छोटी-सी गद्दी पर। कोई पहचान भी नहीं सकता कि यही इस अपार संग्रहालय का संग्राहक है । परिचय देते ही किस नम्रता और मिठाससे वार्तालाप किया और संग्रहालय को ऊपरसे नीचे तक बतलाया कुछ कहने में नहीं आता । मैं तो आपके संग्रह की लगन, खोज और अर्थ-व्ययको देखकर अवाक् रह गया । कितनी जाति की वस्तुओं का संग्रह है, कुछ कहा नहीं जा सकता। वह तो साक्षात्कारसे ही मालूम किया जा सकता है। मैं नाहटाजीके अपार परिश्रम व उनकी साहित्य, इतिहास और संस्कृतिके प्रति सच्ची खोज की लगन तथा प्रकाशनकी अभिरुचि को देखकर भूरि-भूरि प्रशंशा करता हूँ और उनका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मैं भगवान् महावीरसे प्रार्थना करता हूँ कि आपको स्वस्थ दीर्घ जीवन प्रदान करें और जिस कार्यमें आप जुटे हुए हैं, उसके लिए आपको शतगुणी क्षमता प्रदान करें। बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री राजरूपजी टोंक रत्न-गर्भा, वीरप्रसूता माँ भारतीकी गौरवमयी गोदमें अनेक नर-पुंगव प्रतिभा सम्पन्न, ग्रन्थकार, शोधकार तथा सन्त-महात्मा अवतरित हुए हैं। उन्हीं नररत्नोंमें स्वनामधन्य श्री अगरचन्द अपनी ज्योतिपुंज प्रतिभाकी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी जोड़ रहे हैं। आपको जन्म देकर भारतभूमि धन्य हुई। आप केवल प्रकाण्ड विद्वान् ही नहीं, अपितु हिन्दी, गुजराती, संस्कृत-प्राकृतके ज्ञाता भी हैं। आप अनेक जैन-ग्रन्थोंके शोधक एवं इतिहासकार भी हैं। आपने अनेक विषयोंकी शोध कर अपनी गहन प्रतिभा तथा विद्वत्ताका परिचय दे समाजको चमत्कृत कर दिया है। आपका केवल जैन-समाजमें ही नहीं, अपितु समस्त विद्वत्-समाजमें एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। आप बहुत ही सरल प्रकृति के व्यक्ति तथा सादा जीवन उच्च विचारके प्रतीक है। भारत की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय स्तरके एक समारोहका आयोजन किया गया है, जिसमें आपको अभिनंदन-ग्रंथ भेंट किया जायेगा। राष्ट्रीय स्तरका यह समारोह आपकी महानता तथा सम्पन्न प्रतिभा का प्रतीक है। ___ इस शुभ अवसरपर हम अपनी अनेकानेक शुभकामनायें तथा वधाइयाँ समर्पित करते हैं । जगन्नियन्ता प्रभु आपको युग-युग तक अमर रखे ताकि आप अपनी प्रतिभा तथा भावनाओंको जन-समुदायमें बिखेरकर मानव जातिको लाभान्वित करते रहें। २००: अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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