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________________ प्राचीन साहित्यकी पाण्डुलिपियोंका प्रदेश भेद तथा लेख कापी विभिन्नताके कारण अध्ययन मनन सहज साध्य नहीं है इसके लिए धैर्य के साथ तन्मयतासे अपनेको सूझ-बूझके साथ लगाना पड़ता है ? प्रत्येक शिक्षितज्ञ है तो भी इसमें सफल होना संभव नहीं है। विविध प्रवृत्तियोंमें प्रवृत्त नाहटाजीकी इस क्षेत्रमें सफलताका श्रेय उनकी अत्यधिक लगन व तत्परताको है। वे समाजसेवक गृहस्थ भी है इन सबके साथ-साथ वे एक निष्ठावान् साहित्यसेवी भी हैं । अपर क्षेत्रोंका भारवहन करते हुए उनने जिस प्रकारसे जितना कार्य प्राचीन साहित्यकी सेवाका किया है उसके उदाहरण बहुत ही कम देखने में आते हैं । वेधी तथा स्मार्तके धनी हैं जिससे उनका साहित्यिक ज्ञान सुस्थिर व स्थायी है। प्राचीन साहित्यकी पाण्डुलिपियोंमें कभी-कभी कई तरहकी उलझनोंका सामना करना पड़ता है। किसी पांडुलिपिमें रचनाकारका नाम नहीं है तो किसीमें रचनाकाल नहीं है। किसीमें रचनास्थानका उल्लेख नहीं है तो किसीमें पाण्डुलिपि करने वालेका नाम व कालके उल्लेखका अभाव होता है। ऐसी रचनाओंको उक्त प्रकारकी उलझनोंको सुलझानेके लिए कैसा और कितना प्रयास करना होता है इसकी जानकारी उन्हींको ज्ञात है जो स्वयं प्राचीन साहित्यकी सेवामें संलग्न हैं। नाहटाजीमें उक्त कार्यके लिये अदम्य उत्साह है वे इस प्रसंगमें किसी भी बाधा से न तो घबराते हैं न ही अनुत्साहित होते है-वे सिर्फ तथा अपनी ऊहनासे सब प्रकारकी बाधाओंपर विजय पा लेते हैं। वे अपने आपमें एक सच्चे साहित्यसाधक हैं। वे चिरकाल तक इस साहित्यसाधनामें लगे रहें ताकि प्राचीन साहित्यकी सुरक्षा सेवा इनसे बराबर बनती रहे। सम्पादन व खोज पूर्ण लेख । नाहटाजीने, जैसा कि मैंने ऊपर उपयुक्त किया है कि वे न केवल प्राचीन साहित्यके संग्रहप्रेमी हैं अपित उनका लक्ष्य है उस साहित्यको प्रकाशमें लाकर उसे सुरक्षित कर देना, तदर्थ सम्पादन-प्रकाशनकी आवश्यकता होती है । अपने बलबूतेपर ही इन उभय कार्यों (सम्पादन-प्रकाशन)की पूर्तिका भी पूरा प्रयास करते हैं। आपने अनेक ग्रंथोंका सम्पादन भी किया है तथा प्रकाशन भी। प्राचीन साहित्यकी जैसे-जैसे नवीन पांडुलिपियों होती है उनकी प्रतिलिपि करा कर संग्रहीत करना तथा समय-समयपर उन प्राप्त ग्रन्थोंके परिचयात्मक निबन्ध लेख उन शोध पत्रिकाओंमें प्रकाशित करना जिससे साहित्यप्रेमियों व साहित्यिकों को नवीन ग्रन्थ व रचनाओंका पता लगता रहे । प्रकाशनमें अंशकी आवश्यकता होती है, सभी परिचयात्मक लेख लिखनेसे पहले गहराईसे अनुशीलनकी आवश्यकता रहती है। साथ ही रचनाके पूर्वापरका गहराईसे ग्रन्थन कर ग्रन्थगत रहस्यका पता लगाया जाता है। नवीन रचनाओंके परिचयात्मक लेखोंमें कभी-कभी ऐसे मौके भी आ जाते हैं कि उसके सही निष्कर्ष तक पहुँचना काफी कठिनाईपूर्ण हो जाता है। उस स्थितिमें अपनी सूझ-बूझसे ही अपना दृष्टिकोण अभिव्यक्त करना पड़ता है-और तथ्य निर्णयके लिए अन्य प्रमाणोंकी तलाश करनी पड़ती है। फिर भी कुछ बातें ऐसी रह जाती हैं जिनको संशयात्मक स्थितिमें ही रख देना पड़ता है । जिन सज्जनोंने नाहटाजीके इस प्रकारके निबन्ध पढ़े हैं वे कह सकते हैं कि उनका इस विषयके प्रयास कितना महत्त्वपूर्ण है। अस्तु नाहटाजीकी कार्यपद्धति व उनका प्राचीन साहित्यके लिये कितना अगाध स्नेह है उसका पूरा विवरण शक्य नहीं है क्योंकि हृदयगत भावोंको उसी रूपमें व्यक्त कर सकना कठिन समस्या है। इन पंक्तियोंसे हम नाहटाजीके साहित्यक्षेत्रमें किये जाने वाले प्रयासोंका संक्षेपमें दिग्दर्शन मात्र विशेष है विशेष अनुमानसे ज्ञातव्य है। कामना नाहटाजीके अभिनन्दनका संकल्प करनेवाले सज्जन अत्यन्त धन्यवादके पात्र हैं। क्योंकि उन्होंने एक व्यक्तित्व, कृतित्व और संस्मरण : १५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012007
Book TitleNahta Bandhu Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Sharma
PublisherAgarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages836
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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