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संस्कृति अनुरक्ति, निश्चल आस्था-विश्वास, अन्तरानुभूति-भावुकता, विशालचिन्तन-शीलता, विवेचन-क्षमता, कुशल समालोचक-मौलिकता, सरसता-रोचकता आदि अनेक विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं। धर्म, कर्म, शिक्षा, मानवता, अहिंसा, अनेकान्तवाद, साहित्य-इतिहास, पुरातत्त्व, कला, विनोद, शब्द-चर्चा, गोत्र-जाति, राजा, प्रजा, संस्मरण, कल्पसूत्र, कृषि, स्तुति, अर्थ, काम-मोक्ष, कथा, पुराण, भूगोल, सन्त-परम्परा, सज्जनदुर्जन, अनुरक्ति-विरक्ति, लोक-कथा, प्ररूढ़ियाँ, पुरातन एवं आधुनिक गद्य-पद्यात्मक साहित्य-विश्लेषण, वैदिक-पौराणिक एवं स्मृति-विषयक तत्त्व-चिन्तन, विविध लोक-भाषा चिन्तन, भाग्य आदि शताधिक विषयोंपर साधिकार लिखकर श्री नाहटाजीने अपने विशाल अध्ययन एवं विस्तृत गंभीर-विवेचनकी जो प्राणवन्त अनुभूतियाँ प्रस्तुत की हैं वे उनकी शोध-परक विचार-धाराकी अविच्छिन्न कला कृतियाँ है। राजस्थानी साहित्यकी विवेचनामें श्री नाहटाजीकी मान्यताएँ चिरकालसे सर्वमान्य है।
आपके निबन्ध साहित्यिक विश्लेषणके साथ-साथ वाञ्छित विषयके प्रतिपादनमें एक मौलिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। फलतः शोध-पत्र-पत्रिकाओंमें ये प्रकाशित होते रहते हैं एवं मनीषी सम्पादक उन्हें छापकर अपने पत्रोंको गौरवान्वित समझते हैं। धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक पत्रोंमें श्री नाहटाके निबंध पूर्ण सम्मानके साथ प्रकाशित होते रहते है । कतिपय ये पत्र-पत्रिकाएँ हैं, जिनमें श्री नाहटाके सुविचारित तथा मार्मिक निबंध प्रकाशित होते रहते हैं : १. कल्पना, २. नया-समाज, ३. नागरी-प्रचारिणी पत्रिका, ४. भारतीय विद्या, ५. भारतीय संस्कृति, ६. मरुभारती, ७. मरुवाणी, ८. राजस्थान भारती, ९. राजस्थान साहित्य, १०. राष्ट्र भारती, ११. सम्मेलन पत्रिका, १२ सरस्वती, १३. साहित्य, १४. साहित्य संदेश, १५.सप्त सिन्धु, १६. हिन्दी अनुशीलन, १७ हिन्दुस्तान, १८.हिन्दुस्तानी,१९ आलोचना,२० नवनीत, २१. नवभारत टाइम्स, २२. कल्याण, २३. अवन्तिका, २४, जनपद, २५. आज, २६. जनपथ, २७. अखंड ज्योति, २८. कलाधर, २९. जैन जागृति, ३०. जैन भारती, ३१. जैन-सन्देश, ३२. नई दिशा, ३३. महावीर सन्देश, ३४. युगान्तर, ३५. लोक-जीवन, ३६. ब्रज भारती, ३७. राजस्थान-क्षितिज, ३८. राष्ट्रदूत, ३९. वीर, ४०. वीर सन्देश, ४१. संगीत आदि लगभग १५० पत्र-पत्रिकाओंमें श्री नाहटाके विविध विषयोंपर आलोचनात्मक निबंध निकल चुके हैं और निकल रहे हैं। आपके वार्धक्यमें नव-जीवनकी प्रखर ज्योति निरन्तर प्रकाशमान है एवं साहित्य-साधनाकी भावना एक विशिष्ट तन्मयतासे दिनोंदिन वर्धमान भी है।
श्री नाहटाके विविध निबंधोंमें यह प्रायः देखा जाता है, कि वे विषयानसार प्रत्येक लेखके प्रारंभमें 'उपक्रमके रूप में कुछ ऐसी भावोत्पादक पंक्तियाँ लिखते हैं जो निबंधकी आन्तरिक भावनाको प्र हैं एवं जिस प्रकार नींवकी सुगठित परिसमाप्तिपर प्रासाद अथवा गृहका निर्माण शीघ्रातिशीघ्र होने लगता है उसी प्रकार यह उपक्रम निबंधकी पूर्णतामें विशेषतः सहायकके रूपमें यहाँ ग्राह्य माना जाता है। उपक्रमात्मक यह वैशिष्टय श्री नाहटाकी निबन्धकलाकी एक असाधारण विशेषता है । यहाँ यह स्मरणीय है कि इस लघु भूमिकाकी भाषा-शैली निबंधकी रूप-रेखापर अवलंबित रहती है। शोध-परक लेखोंके उपक्रमोंकी भाषा संस्कृतनिष्ठ एवं शैलीमें सर्वत्र गाम्भीर्य रहता है लेकिन लोक-साहित्यसे सम्बद्ध निबंधों में लोक-भाषा जनित माधुर्यके साथ जन-जनमें प्रचलित शब्दोंका आधिक्य रहता है। उपक्रम भी सरस, सरल तथा संवेदनात्मक रहते हैं । 'एक मुसलमान कविकी अज्ञात रचना 'पेमाइ कथा'का उपक्रम इस प्रकार है :
“हिन्दी भाषा और साहित्यके निर्माणमें मुसलमानोंका भी उल्लेखनीय योग रहा है। राजस्थानमें सन्तवाणीसंग्रहकी जो हस्तलिखित प्रतियाँ मिलती हैं उनमें मुसलमान कवियोंके पद, साखी आदि रचनाएँ भी मिली हैं। १४ वीं शताब्दीसे लेकर १९ वीं शताब्दी तकके अनेक मुसलमान कवियोंकी रचनाएं मेरे
८२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रंथ
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