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करुणा के अमर देवता
जो उवसमइ तस्स अत्थि आराहणा ।
-वृहत्कल्प ११३५ कोई भी दर्शनार्थी मानव जब आपके सम्पर्क में आते हैं तो उन्हें भी आप शिक्षा के तौर पर दो शब्द यही फरमाते हैं-“विग्रह में विकास नहीं विनाश है। इसीलिए भाई-भाई को और पड़ोसी-पड़ोसी को मिलजुल कर रहना चाहिए। अनुकूल या प्रतिकूल कोई भी समस्या उलझने पर भी उसे प्रेमपूर्वक सुलझाना बुद्धिमत्ता है। इस प्रकार डंके की चोट हम कह सकते हैं-भगवान महावीर के निम्न उपदेश को आपने आत्मसात् करने में कोई भी कमी नहीं रखी है।
बुद्ध परिनिव्वुडे चरे, गाम गए नगरे व संजए । संति मग्ग च वूहए, समयं गोयम ! मा पमायए ।
-उ० अ १११३६ साधक ! तू भले गाँव-नगर-पुर-पाटन अथवा और कहीं तू विचरे पर शांति मार्ग का ही उपदेश देने में तत्पर रहना ।
आगमों के महान् ज्ञाता इस समय चरित्रनायक श्री स्थानकवासी जैन समाज में जाति स्थविर-श्रुत स्थविर एवं पर्यायस्थविर की दृष्टि से प्रमुख स्थान पर आसीन है। द्रव्यानुयोगगणितानुयोग-कथानुयोग-चरितानुयोग से परिपुष्ट सुदृढ़ आपका आगमिक ज्ञान एवं अनुभव का एक विशाल कोष है। आप जब सरल-सबोध मालवी भाषा में आगम वाणी पर व्याख्यान फरमाते हैं तब श्रोतावृन्द आनन्द विभोर होकर भक्ति रस में इतने ओतप्रोत हो जाते हैं। मानो जिस प्रसंग का प्रतिपादन किया जा रहा है-साक्षात् उस दृश्य को सामने देख रहे हों अनुभूतियों का अद्वितीय भण्डार आप अपने विराट् मस्तिष्क में संजोये हुए श्रमण संस्कृति को गौरवान्वित कर रहे हैं। मेरी दृष्टि में जिनकी तुलना में बड़े-बड़े विद्वान्-मनीषी, टीकाकार-भाष्यकार भी पीछे रह जायेंगे। आगम वाङ्गमय के प्रति आपकी अटूट श्रद्धा है और उसी श्रद्धा से प्रेरित होकर प्रत्येक साधु-साध्वी को रुचि के अनुसार भर-भर मुट्ठी लुटाया भी करते हैं।
अभी-अभी खम्भात सम्प्रदाय के श्रद्धेय श्री कांति ऋषिजी महाराज के शिष्यरत्न सिद्धान्ताचार्य श्री नवीन ऋषि जी महाराज लगभग दो वर्षों तक अध्ययनार्थ आपके सान्निध्य में रहे, काफी आगमों की वाचना एवं धारणा पूरी की, अब अपने गुरुदेव के समीप पहुंचे हैं।
आपका सुदृढ़ ऐसा अभिमत है-निग्रंथों का ही उपदेश सफल और हितकारक हो सकता है। वह सुमेरु की तरह अटल, हिमाचल की तरह संताप निवारक, शांति प्रदायक अडोल, सूर्य की तरह तेजस्वी और अज्ञानान्धकार का हरण करने वाला, चन्द्रमा की तरह पीयूष वर्षा करने वाला और आल्हादक, सुरतरु की तरह सकल
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