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२२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
"आपके बड़े मुनि महाराज कम पढ़े-लिखे मालूम होते हैं ?”
प्रत्युत्तर में साथी मुनियों ने कहा - पंडित जी ! आपका अनुभव बिलकुल गलत है | क्या आप नहीं जानते हैं- "हीरा मुख से ना कहे, लाख हमारा मोल" भरा हुआ घड़ा कभी शब्द नहीं करता है- “सम्पूर्ण कुम्भो न करोति शब्दम् ।" तदनुसार हमारे बड़े महाराज (श्री कस्तूर चंदजी महाराज) जैन आगमों में ज्योतिष एवं सामुद्रिक ज्ञान में काफी पहुँचे हुए हैं। अति ही अनुभवशील हैं । हमारे सम्प्रदाय में ज्योतिष एवं हस्तरेखा में आपका मुख्य स्थान रहा है । विद्वान अपने मुँह से अपनी बड़ाई कदापि नहीं करते हैं ?"
तो मैं कुछ हस्त रेखा के चित्र साथ लाया हूँ । इनके सामने रखूं । ये चिढ़ेंगे तो नहीं ? पंडित ने मुनियों से पूछा ।
ऐसी बात नहीं । ये महा-मनस्वी घीर-वीर- गम्भीर - गुण से ओत-प्रोत हैं । प्रश्नकर्ताओं का समाधान करना इन्हें अभीष्ट है । हस्तचित्र अवश्य सामने रखो। आपको भी जानकारी नहीं मिलेगी । मुनियों ने कहा ।
वह अपने जेब में से विभिन्न हस्त रेखाओं से मंडित कुछ हस्त-चित्र निकाल कर गुरु प्रवर चरित्रनायक श्री के सामने रखकर बोला- “मुनि जी ! आपके साथी मुनियों से मालूम हुआ कि - आप महान् ज्ञानी, ध्यानी-योगी हैं, मैंने आपको पहचाना नहीं । मेरा अनुमान गलत रहा। मुझे माफ करिए । देखिए यह हस्त रेखा वाला इन्सान आपकी ज्ञान दृष्टि में कैसा हो सकता है ? आप अपना अभिमत अभिव्यक्त करें।"
इस हस्त रखा चित्र को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि यह मानव राजा होना चाहिए। साथ ही साथ हिंसक भी होना चाहिए । रहस्योद्घाटन करते हुए गुरु भगवंत ने कहा ।
गुरु प्रवर द्वारा प्रकथित सम्यक् समाधान पर वह पंडित आश्चर्यान्वित हुआ । क्योंकि - महाराज श्री का अनुभव बावन तोला पाव रत्ती सही था । मतलब यह कि वह हस्त-चित्र इंग्लैण्ड निवासी चर्चिल का था । वह शासक भी था और हिंसक प्रवृत्ति अगुआ भी ।
दूसरा हस्त चित्र सामने रखकर पुन: पंडित बोला
"मुनिजी ! आपकी दृष्टि में यह इन्सान कैसा होना चाहिए ?"
अच्छी तरह से रेखाचित्र को देखकर गुरु भगवंत ने पंडित से कहा - "इन रेखा चित्रों के आकार-प्रकार को देखते हुए ऐसा लगता है कि - यह इन्सान भी शासक होना चाहिए साथ ही साथ दयालु एवं अहिंसक भी ।
पंडित मुँह तले अंगुली दबाकर बोला- 'मुनिजी । अध्ययन है कि - सीधे मूल पर ही चोट करता है ।'
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आपका इतना विशाल
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