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जैनधर्म में ज्योतिष
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१८ पूर्वाषाढ़ा
हस्तीचालवत्
विषायणस १६ उत्तराषाढ़ा
बैठे सिंहवत्
वाघ्रवचायणस २० अभिजित्
गोशृगाकार
मोगलायन २१ श्रवण
कावड़ाकार
संखायण २२ धनिष्ठा
पक्षी पिंजराकार अग्निवेसायण २३ शतभिषा
पुष्पराशि आकृति कुण्डली लायण २४ पूर्वभाद्रप्रद
अर्ध वापिकाकार कनियस २५ उत्तराभाद्रपद
अर्ध वापिकाकार धनंजयस २६ रेवती
नावाकार
पुष्पायन २७ पूर्वाफाल्गुनी
अर्ध पल्यंकाकार गोलवायण २८ उत्तराफाल्गुनी .
अर्ध पल्यंकाकार काश्यप लवण समुद्र वर्तुलाकार माना गया है। शास्त्रों राहु के निम्न नाम प्रचलित हैंसिंघाष्टक, जटिल, क्षुल्लक, खर, ददुर, मगर, मच्छ, कच्छप, कृष्ण सर्प, आदि । राहु का विमान ५ वर्ण वाला माना है । वे क्रमशः निम्न हैं-कृष्ण, नील, रक्त, पित्त, शुक्लादि।
स्वप्न संसार की भी विवेचना जैन ज्योतिष में पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है । तीर्थंकर भगवान जब गर्भ में आते हैं तो उनकी माता को निम्न प्रकार के १४ स्वप्न आते हैं
हस्ति, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, फूलमाला, चन्द्र, सूर्य, ध्वजा, कलश, सरोवर पद्मयुक्त, क्षीर समुद्र, देव विमान, रत्न राशि, निधूम ज्वालादि । राजगृही के पुण्यपाल को ६ स्वप्न आये थे। उनका विशद् वर्णन भगवान महावीर ने फरमाया था। जैनधर्मानुयायी राजा चन्द्रगुप्त को १६ स्वप्न आये थे । भद्रबाहुजी ने उनका फलित कथन किया था।
जैनाचार्य जयमलजी महाराज साहब की माता ने हँसता हुआ चन्द्र देखा। बाद में एक दिव्याकृति दिखाई दी। वह मुंह में प्रवेश कर गई। जयमल जी के पिता को माता ने स्वप्न कहा। जयमलजी के पिताजी ने स्वप्न शुभ है, बताया। कुछ दिन बाद महिमा देवी के गर्भ से जयमलजी महाराज साहब का जन्म हुआ। जम्बू राजकुमार की माता ने स्वप्न में गर्भावस्था में जामुन देखे । पुत्र जन्म हुआ। नाम जम्बूकुमार रक्खा । वे बड़े होकर संत बन गये ।
वीतशोका नगरी की महारानी धारिणी ने स्वप्न में सिंह देखा । गर्भ से महाबलकुमार का जन्म हुआ, जो संतात्मा बने ।
पूज्य जैनाचार्य स्वर्गीय चौथमलजी की माता ने गर्भावस्था में एक आम्रवृक्ष फलों से लदा देखा । कुक्षि से जैनाचार्य जैसे महान् आत्मा का जन्म हुआ। मेवाड़ पूज्य स्वर्गीय मोतीलाल जी महाराज साहब की माता ने स्वप्न में मोतियों की मालाएँ देखीं। पुत्र रत्न का जन्म हुआ। नामकरण श्री मोतीलाल किया । ये मेवाड़ पूज्य महान् संत बने ।
जैनधर्म में ज्योतिष का मर्म विद्यमान है। स्वप्न पूर्वजन्मकृत संस्कारों के अनुसार आते हैं। चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति नामक ग्रन्थ में दोनों ग्रहों का विस्तृत विवेचन है। जैनधर्म में ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
नोट :- मघा नक्षत्र के बाद पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी क्रम से पढ़े जायें। (१) नक्षत्र गोत्रादि-सप्तदश चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, षष्ठ उपांग, पृ० २३० (२) नक्षत्र के तारे व आकृति अष्टादश सूर्य-प्राप्ति, सप्तम उपांग, पृ० १९२ (३) राहु वर्णन-सूर्यप्रज्ञप्ति, पृ० ३८७
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