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________________ ३८८ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ वार्तिक नाम की टीका लिखी है। वि० सं० १७६२ में जन्म कुण्डली विषय को लेकर 'यशोराज पद्धति' नामक एक व्यवहारोपयोगी ग्रंथ लिखा है। इसी प्रकार और भी अनेकों जैन ज्योतिषाचार्य हो चके हैं जिन्होंने जैन ज्योतिष साहित्य में अभिवृद्धि की है। एक बात स्पष्ट है कि प्राचीनकाल से ही जैन ज्योतिषाचार्य इस विज्ञान में रुचि लेते रहे हैं। इसकी प्राचीनता पर डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ने लिखा है, "जैन ज्योतिष की प्राचीनता का एक प्रमाण पंचवर्षात्मक युग में व्यतीपात आनयन की प्रक्रिया है । वेदांग ज्योतिष से भी पहले इस प्रक्रिया का प्रचार भारत में था।"२ डा० शास्त्री ने आगे लिखा, "नक्षत्रों के सम्बन्ध में जितना ऊहापोह जैनाचार्यों ने किया है, उतना अन्य लोगों ने नहीं। प्रश्नव्याकरणांग में नक्षत्र योगों का वर्णन विस्तार के साथ किया है। इसमें नक्षत्रों के कुल, उपकुल और कुलोपकुल का निरूपण बताया है।"3 जैनाचार्यों ने ज्योतिष के विविध अंगों पर प्रकाश डाला है। डॉ० शास्त्री कहते हैं, “विषय विचार की दृष्टि से जैन ज्योतिष को प्रधानतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-एक गणित और दूसरा फलित । गणित ज्योतिष में सैद्धांतिक दृष्टि से गणित का महत्त्वपूर्ण स्थान है, ग्रहों की गति, स्थिति, वक्री, मार्गी, मध्यफल, मन्दफल, सूक्ष्मफल, कुज्या, त्रिज्या, बाण, चाप, व्यास, परिधिफल, एवं केन्द्रफल आदि का प्रतिपादन बिना गणित ज्योतिष के नहीं हो सकता है। आकाश मंडल में विकीणित तारिकाओं का ग्रहों के साथ कब कैसा सम्बन्ध है, इसका ज्ञान भी गणित प्रक्रिया से ही सम्भव है जैनाचार्यों ने गणित ज्योतिष सम्बन्धी विषय का प्रतिपादन करने के लिए पाटीगणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, गोलीय रेखागणित, चापीय एवं वक्रीय त्रिकोणमिति, प्रतिभागणित, शृगोन्नतिगणित, पंचांगनिर्माण गणित, जन्मपत्रनिर्माण गणित, ग्रहयुति, उदयास्त सम्बन्धी गणित एवं मन्त्रादि साधन सम्बन्धी गणित प्रतिपादन किया है।"४ १ क्रमांक १ से १५ तक ज्योतिषाचार्यों के द्वारा रचित ज्योतिष साहित्य के विशेष अध्ययन हेतु देखें(१) भारतीय ज्योतिष-श्री नेमिचन्द्र शास्त्री (२) जैन साहित्य और इतिहास - पं० नाथूराम प्रेमी (३) गणितसार संग्रह - सं० डा० ए० एन० उपाध्ये व अन्य (४) Ganitatilak by Sripati-Edt. H. R. Kapadia. (५) जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १४, कि० १, २, भाग १३ कि० २ (६) दुगदेवाचार्यकृत शिष्टसमुच्चय-सं० अ० स० गोपाणी (७) Jainism in Rajasthan--Dr. K. C. Jain (८) केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि-सं० डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री (६) जैन वाङ्मय का प्रामाणिक सर्वेक्षण-सोहनी (१०) Trailokya Prakash-Edt. आचार्य रामस्वरूप शर्मा (११) जिनरत्नकोश---प्रो० एच० डी० बेलणकर (१२) ज्योतिषसार संग्रह-सं० पं० भगवानदास जैन (१३) हीरकलश जैन ज्योतिष-सं० शास्त्री दि० म० जानी (१४) प्राकृत साहित्य का इतिहास-डा० जगदीशचन्द्र जैन (१५) History of Classical Sanskrit Literature -N. Krishnamachariar. २ केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि, प्रस्तावना, पृष्ठ ३ ३ वही, पृष्ठ ४ ४ वही, पृष्ठ ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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