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अनेकान्त दर्शन
प्रा० उ० भा० कोठारी (प्रमुख, हिन्दी विभाग, प्रताप महाविद्यालय, अमलनेर (महाराष्ट्र)
जोग विणा वि लोगस्स, ववहारो सवहा न निव्वउई। तस्स भुवणेक गुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स ।।
-आचार्य सिद्धसेन दिवाकर । अनेकान्त संसार का गुरु कहलाने योग्य है। इसके बिना इस दुनिया के व्यवहारों का निपटारा समुचित ढंग से नहीं हो सकता। इसलिए आचार्य सिद्धसेन दिवाकर उसे नमस्कार करते हैं।
अनेकान्त का सिद्धान्त दार्शनिक जगत को जैनदर्शन की मौलिक देन है। यह जैन चिन्तकों की विलक्षण सूझ है । वास्तविकतः यह सिद्धान्त विश्वमंगलकारक है, किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि उसे एक सम्प्रदाय की छाप लगाकर अलग रख दिया जाता है।
जैनागमों में उल्लेख है कि भगवान महावीर के समय ३६३ मत प्रचलित थे। भगवान के समकालीन सात व्यक्ति तो ऐसे थे कि वे स्वयं को तीर्थ का प्रवर्तक बतलाते थे। ऐसे अनेक मतवादों के कोलाहल में लोगों की बुद्धि कुण्ठित थी। वे जानना चाहते थे कि सत्य कहाँ और किस रूप में उपस्थित है। प्रत्येक प्रचारक दूसरों के मत के खण्डन में ही अपना बड़प्पन मान रहा था। ऐसे मतवादों के कोलाहल में भगवान महावीर जैनदर्शन का यह मौलिक और समन्वयस्वरूप सिद्धान्त समझाने लगे। यह वही सिद्धान्त है जिसको अनेकान्त या स्याद्वाद के नाम से जाना जाता है।
जैनदर्शन के अनुसार इस विश्व की प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक है। रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि का विचार करते हुए दस पांच गुण-धर्मों को तो हम सहज ही देख सकते हैं । इनके अलावा कितने ही ऐसे हैं जो सूक्ष्म रूप में हैं या गहराई में छुपे हैं। इतना ही नहीं एक अपेक्षा से कुछ गुण-धर्मों का आकलन होता है तो इससे भिन्न दूसरी अपेक्षा से भिन्न गुण समूह सामने आता है।
इतना ही नहीं वस्तु में परस्पर विरोधी गुण-धर्म भी हमें दिखलाई देते हैं। जैसे जो आम कच्चा है वह हरा है और खट्टा है, लेकिन चार दिनों बाद वह सुन्दर केसरिया रंग का और स्वाद में मधुर हो जायगा । यह रंग और यह मधुरता ऊपर से किसी ने सींची नहीं है। ये दोनों गुणधर्म उसी में अंतर्भूत थे। कालान्तर से प्रगट हो गये। हम भी शरीर की अपेक्षा से अनित्य और जीव की दृष्टि से नित्य है। या और एक उदाहरण लीजिए-स्वामी दयानन्द सरस्वती से एक बार पूछा गया कि 'आप विद्वान हैं या अविद्वान' तो स्वामीजी ने उत्तर दिया था-'दार्शनिक क्षेत्र में विद्वान तथा व्यापारिक क्षेत्र में अविद्वान ।' इससे सिद्ध है कि एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी
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