________________
१२
मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
कुछ सन्त पहुँच गये। उधर संथारा सीझने की घड़ियाँ नजदीक आ रही थीं। एक दिन मन्दसौर निवासी जीतमल जी लोढ़ा को स्वप्न दर्शन हुआ कि - "गुरुजी जवाहरलाल जी महाराज का कार्तिक शुक्ला ६ के दिन, १२ बजकर १५ मिनट पर स्वर्गवास होगा और तीसरे स्वर्ग में पधारेंगे ।" विद्युत की भाँति समाचार सारे शहर में फैल गये । दर्शनार्थ जन-प्रवाह नदी पूर की तरह उमड़ने लगा। सभी उस दिन की प्रतीक्षा में आँखें बिछाये बैठे थे । वही दिन आया । प्रातःकाल में छोटे मन्नालाल जी महाराज ने गुरुजी से पूछा
"भगवन् ! कुछ ज्ञान का आभास हुआ है ।"
हाँ मुने ! 'क्षयोपशम परमाणे' अर्थात् कुछ अंश मात्रा में अवधिज्ञान का आभास हुआ है। बस लोढ़ा जी के स्वप्नानुसार उसी समय आप श्री का स्वर्गवास हुआ । इससे पूर्ण विश्वास किया जाता है कि वह दिव्य आत्मा तीसरे देवलोक में अवश्य पहुँची है ।
उपर्युक्त चमत्कारी समाचार कान्फ्रेन्स के मुख्य पत्र "जैन - प्रकाश” के अंक में अच्छे ढंग से प्रकाशित भी हो चुके थे ।
तत्पश्चात् चरित्रनायक श्री अपने शिष्य गुलाबचन्द जी महाराज के साथ अजमेर से विहार कर काफी महीनों के बाद पाली पहुँचे । जहाँ गुरुदेव श्री नन्दलाल जी महाराज, श्रद्धेय श्री खूबचन्द जी महाराज ठाणा २६ विराज रहे थे । यहाँ आशातीत धर्म-प्रभावना करके जोधपुर संघ के अत्याग्रह पर जोधपुर पधारे । जहाँ प्रसिद्ध वक्ता जैन दिवाकर जी महाराज जैन धर्म की अद्वितीय प्रभावना कर रहे थे । यहाँ पारस्परिक संत- मण्डली में काफी विचार-विमर्श हुआ । जहाँ तक पूज्य श्री हुक्मीचन्द जी महाराज के सम्प्रदाय के भावी आचार्य पद की घोषणा न करें, वहाँ तक अर्थात् स्वल्प समय के लिए आचार्य पदोचित समस्त उत्तरदायित्व गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज के जिम्मे किया गया । मुमुक्षु मूलचन्द जी कोठारी की भगवती दीक्षा इन्हीं दिनों जोधपुर की विशाल जन-सभा के समक्ष सम्पन्न कर सभी सन्त अपने-अपने वर्षावास के नियुक्त स्थानों पर पहुँचे ।
आचार्य पद की घोषणा
सं० १९७३ का चातुर्मास चरित्रनायक श्री जी ने पालनपुर का चातुर्मास पूरा कर पुन: ब्यावर पधारे । यहाँ प्र० श्री चौथमल जी महाराज गुरु श्री नन्दलाल जी महाराज, श्री खूबचन्द जी महाराज, पं० श्री देवीलाल जी महाराज आदि वरिष्ठ मुनियों का स्नेह मिलन हुआ । समाज हितार्थ आचार्य देव श्री हुक्मीचन्द जी महाराज के पंचम पट्टधर आगमोदधि शांत दांत स्वभावी श्रद्धेय श्री मन्ना लाल जी महाराज को “आचार्य-पद” समर्पित किया गया। इस घोषणा से सर्वत्र अच्छी प्रतिक्रिया हुई । सभी ने इस घोषणा का मुग्ध कंठ से अभिनन्दन किया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org