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२७२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
सोलहवीं शताब्दी से मालवा के ग्राम नगरों में रचे जाने की स्पष्ट सूचना देने वाली रचनाएँ मिलने लगती हैं । अतः वहीं से श्वेताम्बर जैन कवियों और उनकी रचनाओं का विवरण देना प्रारम्भ कर रहा हूँ । करीब ४०० वर्षों तक यह परम्परा ठीक से चलती रही है । अतः इस लेख में १६वीं शताब्दी के प्रारम्भ से १८वीं शताब्दी तक की ३०० वर्षों के मालवा में रचित श्वेताम्बर जैन भाषा साहित्य का संक्षिप्त उल्लेख किया जायेगा ।
१. सम्वत् १५०७ में ओसवंशीय आनन्द मुनि ने धर्म लक्ष्मी महतरा भाख नामक ५३ पद्यों का ऐतिहासिक काव्य बनाया जो कि 'जैन ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय' नामक ग्रंथ में प्रकाशित भी हो चुका है। इसमें रत्नाकरगच्छ के रत्नसिंह सूरि के समुदाय की धर्म लक्ष्मी महतरा का ऐतिहासिक परिचय दिया जाता है । वे विहार करती हुई मांडवगढ़ पहुँचती हैं, उसका वर्णन करते हुए कवि लिखता है—
सिंह
मांडवगढ़ गिरि आवीया अ ननिहि मनोरथ श्री धर्म लक्ष्मी मुहतर वांदुउ, सफल जन्म तुम्ह भाग्य विशेषिइ पुहतां श्री श्रीधर्मलक्ष्मी मुहतर साचिहु, पेखवि इण अवसरि नित महा महोत्सव, श्री मालवदेस नयरि गठि मंदिरि पूरई हंस गमणि मृग लोयणि सुन्दरि, अहवि करइ सिंगार | हसमसि नारि वधावइ मोती, इण परि रंग अपार ॥ ३६ ॥ दिये उपदेश अस्योम अनोपम, बूझइ जाण अजाण । भल विदवास तथा चित चमकइ, महिमा मेरु समाण ॥४०॥ अन्त में कवि ने रचनाकाल, स्थान व मांडवगढ़ के श्रावकों का उल्लेख करते हुए लिखा है
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अति
लाहि ।
होहिं ||३६|| सूरिंद | आनंद ||३७||
संघपति उल्लास ।
वंछित आस ||३८||
गुरुआ अ आचार, कीधा गुण नवि वीसरई अ । जाणती अ गुरु उवयार, श्रीधर्मलक्ष्मी महतरा ओ ॥ मंडबू अ नयर प्रवेसि, संवत ( १५०७ ) पनरसतोतरइ अ ।
आनंद मुनि || सहोदरु अ ।
श्री मुहतरु अ भास करेसि, ओसवंसि श्री संघ ओ सि अनदिन मंडण भीम सोती अ भोजा तन, संघपति माणिक पय नमइ ओ ॥ धामिणि ओ दो आसीस, श्री रयणसिंह सूरि परिवार सहा । जीवुं ओ कोडी वरीस, श्री धर्मलक्ष्मी मुहतरा ऐ ।। हा - श्री धर्मलक्ष्मी मुहतरा, अविचल जी ससिभाण । अह निसि अह गुण गाइतां, रिद्धि वृद्धि कल्याण ॥
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