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२५० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
(११) वृहत् स्वयंभूस्तोत्र टीका। (१२) शब्दाम्भोज टीका।
ये सब ग्रंथ कब और किसके राज्यकाल में लिखे गये कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इन्होंने देवनन्दी की तत्त्वार्थवृत्ति के विषम पदों की एक विवरणात्मक टिप्पणी लिखी है। इनका समय ११वीं सदी का उत्तरार्द्ध एवं १२वीं सदी का पूर्वार्द्ध ठहरता है । इनके नाम से अष्टपाहुड पंजिका, मूलाचार टीका, आराधना टीका आदि ग्रंथों का भी उल्लेख मिलता है, जो उपलब्ध नहीं हैं।
(१०) आशाधर-ये संस्कृत साहित्य के पारदर्शी विद्वान थे। ये मांडलगढ़ के मूल निवासी थे । मेवाड़ पर मुसलमान बादशाह शहाबुद्दीन गौरी के आक्रमण से त्रस्त होकर मालवा की राजधानी धारा में अपने एवं अपने परिवार की रक्षार्थ अन्य लोगों के साथ आकर बस गए। ये जाति के बघेरवाल थे। पिता सल्लक्षण एवं माता का नाम श्रीरत्नी था। पत्नी सरस्वती से एक पुत्र छाहड़ हुआ। इनका जन्म वि० सं० १२३४-३५ के आस-पास अनुमानित है। नालछा में ३५ वर्ष तक रहे और उसे अपनी साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया। इनकी रचनाएं इस प्रकार हैं
(१) सागारधर्मामत–सप्त व्यसनों के अतिचार का वर्णन है। श्रावक की दिनचर्या और साधक की समाधि व्यवस्था आदि का वर्णन इसमें है। (२) प्रमेयरत्नाकरस्याद्वाद विद्या की प्रतिष्ठापना। (३) भरतेश्वराभ्युदय-महाकाव्य में भरत के ऐश्वर्य का वर्णन है। भरतेश्वराभ्युदय को सिद्धचक्र भी कहते हैं क्योंकि इसके प्रत्येक सर्ग के अन्त में सिद्धि पद आया है । (४) ज्ञान दीपिका । (५) राजमति विप्रलम्भ-खण्ड काव्य है । (६) अध्यात्म रहस्य-योग ग्रन्थ है । (७) मूलाराधना टीका। (८) इष्टोपदेश टीका । (६) भूपाल चतुर्विंशतिका टीका। (१०) क्रियाकलाप। (११) आराधनासार टीका। (१२) अमरकोश टीका । (१३) काव्यालंकार टीका । (१४) सहस्रनाम स्तवन टीका। (१५) जिनयज्ञकल्प-सटीक इसका दूसरा नाम प्रतिष्ठासारोद्धार धर्मामृत का एक अंग है। (१६) त्रिषष्टि स्मृतिशास्त्र सटीक (१७) नित्यमहोद्योत अभिषेक पाठ-स्नान शास्त्र । (१८) रत्नत्रय विधान (१९) अष्टाङ्ग हृदयी धोतिनी टीका-वग्भट के आयुर्वेद ग्रन्थ अष्टाङ्ग हृदयी की टीका । (२०) धर्मामृत मूल और (२१) भव्यकुमुदचन्द्रिका-धर्मामृत पर लिखी गई टीका।
(११) श्रीचन्द्र-श्रीचन्द्र धारा के निवासी थे । लाड़ बागड़ संघ के आचार्य थे। इनके ग्रंथ इस प्रकार हैं :-(१) रविषेण कृत पद्मचरित पर टिप्पण (२) पुराणसार (३) पुष्पदंत के महापुराण पर टिप्पण (उत्तरपुराण पर टिप्पण) (४) शिवकोटि की भगवती आराधना पर टिप्पण। पुराणसार वि० सं० १०८० में, पद्मचरित की टीका वि० सं० १०८७ में, उत्तरपुराण का टिप्पण वि० सं० १०८० में राजा भोज के राज्यकाल में रचा। टीका प्रशस्तियों में श्रीचन्द्र ने सागरसेन और प्रवचनसेन नामक दो सैद्धांतिक विद्वानों का उल्लेख किया है। ये दोनों धारा निवासी थे। इससे स्पष्ट For Private & Personal Use Only
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