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________________ मालवा में जैनधर्म: ऐतिहासिक विकास २४७ से ७ मील दक्षिण में विहार नामक स्थान पर भी उपलब्ध हुए हैं । यहाँ जैन मंदिरों के साथ ही हिन्दू, बौद्ध व इस्लाम धर्म के अवशेष भी मिले हैं। इसके अतिरिक्त डॉ० एच० व्ही० त्रिवेदी ने निम्नांकित स्थानों पर राजपूतकालीन जैन मंदिर के प्राप्ति की सूचना दी है : (१) बीजवाड़ा जिला देवास, (२) बीथला जिला गुना, (३) बोरी जिला झाबुआ, (४) छपेस जिला राजगढ़ (ब्यावरा) (५) गुरिला का पहाड़ जिला गुना (६) कड़ोद जिला धार (७) पुरा गुलाना जिला मंदसौर एवं (८) बईखेड़ा जिला मंदसौर । बईखेड़ा श्वेताम्बर मतावलम्बियों का तीर्थस्थान भी है । यहाँ चित्तौड़ की चौबीसी के मुख्य मंदिर के द्वार स्तम्भों की कला से मिलती-जुलती कला विद्यमान है। चित्तौड़ की चौबीसी मुख्य मंदिर का काल १०वीं - ११वीं शताब्दी है और यही समय यहाँ के द्वार स्तम्भों का भी है । "वईपारसनाथ" तीर्थ के सम्बन्ध में किंवदन्ती है कि यहाँ जो प्रतिमा है वह पहले एक बिम्ब में थी । एक सेठ की गाय जंगल में चरने के लिये जाती थी । उस गाय का दूध प्रतिमा पी लेती थी । सेठ व उसके परिवार वाले आश्चर्य करते थे कि गाय का दूध कहाँ जाता है ? एक बार सेठ को स्वप्न हुआ कि मेरा (पार्श्वनाथ का) मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठा करवाओ। इस पर उस सेठ ने वईखेड़ा ग्राम में उक्त मंदिर बनवाया और बड़ी धूमधाम से प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई । यहाँ के मंदिर का सभामण्डप चित्रांकित है । इस काल में इतने मंदिरों की प्राप्ति ही इस बात को प्रमाणित कर देती है कि जैनधर्म इस समय में अपनी श्रेष्ठ स्थिति में रहा होगा । धार में भी इस समय के अनेक मंदिरों का उल्लेख मिलता है । जिस प्रकार इस युग में अनेक जैन मंदिरों के निर्माण के उल्लेख के साथ ही साथ उनके अवशेष मिलते हैं, ठीक उसी प्रकार इस युग में अनेक जैन विद्वान भी हो चुके हैं जिन्होंने अपनी विद्वत्ता से राजपूत काल के गौरव को बढ़ाया है उनमें से प्रमुख जैनाचार्यों एवं विद्वानों का परिचय उनके द्वारा लिखे गये ग्रन्थों सहित निम्नानुसार दिया जा सकता है— (१) जिनसेन - ये पुन्नाट संघ की आचार्य परम्परा में हुए। ये आदिपुराण के कर्त्ता, श्रावक धर्म के अनुयायी एवं पंचस्तूपान्वय के जिनसेन से भिन्न हैं । ये कीर्तिषेण के शिष्य थे । इनका "हरिवंश" इतिहास प्रधान चरित काव्य श्रेणी का ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ की रचना वर्धमानपुर वर्तमान बदनावर जिला धार में की गई थी । दिगम्बर सम्प्रदाय के कथासंग्रहों में इसका स्थान तीसरा है । (२) हरिषेण - पुन्नाट संघ के अनुयायियों में एक- दूसरे आचार्य हरिषेण हुए हैं, १ Bibliography of Madhya Bharat, Part I, page 7. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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