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शुभकामना एवं श्रद्धार्चन
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प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज
। महासती मधुबाला जय-जयकार है, खुशियाँ अपार हैं,
प्रवर्तकजी महाराज को, वन्दन बारम्बार है ॥टेर।। ओ“जन्म सन् उन्नीसौ चौंसठ, 'मन्दसौर' में पाया जी-२। 'लक्ष्मीचन्द जी' पिता आपके, 'हगाम बाई' जाया जी-२ ॥१॥ 'दूगड़ वंश' में जन्म लिया है, 'हीरालाल' गुरु राया जी-२ । धारा उत्तम संयम को, अब जीवन सफल बनाया जी-२ ॥२॥ 'रामपुरा' में दीक्षा लीनी, पिता श्री गुरु धारे जी-२। विद्या-सेवा - विनय से पाई, कल्याणी हितकारे जी-२ ॥३॥ गाँव-गाँव और नगर-नगर में, अहिंसा धर्म फैलाते जी-२। जैन-तत्त्व अरु दया का झंडा, घर-घर में फहराते जी-२ ॥४॥ अभिनन्दन हम करते गुरुवर, सच्चा हीरा-हीरा जी-२। जीवन पावन 'मधु' बनाये, हीरा निखरा-निखरा जी-२ ॥५॥
मालवरत्न श्री कस्तूरचन्दजी महाराज
- महासती मधुबाला
(तर्ज-शुभ फल पावो रे.....) गुरु गुण गाओ रे, गुरु गुण गाओ रे,
_ हिल-मिल चरणों में शीस झुकाओ रे ॥टेर।। जन्म लिया है शहर 'जावरा' खुशियां छाई भारी रे । 'रतिचन्द जी' पिता, मात 'फूली' उपकारी रे ॥१॥ वैराग्य भाव को धार आप, संसार असार है जाना रे। किया ज्ञान अभ्यास श्रेष्ठ संयम को माना रे ।।२।। शुभ वेला, शुभ पल में आप दीक्षा का ठाट लगाया रे । खूबचन्द जी महाराज को गुरु बनाया रे ॥३॥ विनय-वैयावृत्य और बड़ों की सेवा खूब ही कीनी रे । धीर - वीर-करुणा सागर की पदवी दीनी रे ॥४॥ गुण-वर्णन मेरी जबान ये, नहीं पूर्ण कर सकती रे। 'मधु कुंवर' फिर भी चरणों में, भावाञ्जलि धरती रे ॥५॥
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