SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्देश १४१ मारत के महान् ज्योतिधर शुभ संत शिरोमणि, मालवरत्न, उपाध्याय श्री कस्तूरचंदजी महाराज कामना साहब के प्रति एक भावांजलि पंडितरत्न, उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब बाल्य अवस्था से ही इस भौतिक धरातल से ऊपर उठकर अध्यात्म की ओर अग्रसर हो गये हैं। ऐसे प्रमाण भारत की पावन भूमि पर विरल ही हैं। आपकी मधुर वाणी, सरल व्यवहार, स्पष्ट विचार, परहित की असीम भावना आपकी अपनी विशेषताएँ हैं, जो मानव मन को सहज ही प्रमुदित कर देती हैं। आपका व्यक्तित्व इतना व्यापक एवं विराट है कि वह किसी भी सम्प्रदाय विशेष के घेरे में नहीं बंधता । प्रत्येक व्यक्ति, समुदाय तथा सम्प्रदाय के प्रति सहानुभूति, प्रीतिभाव, श्रद्धा एवं आदर आपके समग्र जीवन के विराट तत्त्व हैं। अभी तक के दीर्घायु जीवन में शिष्य परम्परा के प्रति कभी भी मोह नहीं रहा, जबकि समस्त संत मण्डल आपको अपना आराध्य मानते हैं। इसका कारण है कि आपने सदैव संतों को आत्मीयता, स्नेह एवं उदार हृदय से अपने सान्निध्य में रखा। तथा साधना के पथ पर सभी को अग्रसित करने में आप प्रकाश स्तम्भ एवं प्रेरणा के स्रोत बने रहे। आपकी प्रतिभा गुरु गौतम की प्रतिभा का आभास सहज ही करा देती है। जो भी संत आपके सम्पर्क में एक बार आ जाता है वह आजीवन आपके चरणों में नतमस्तक होकर अपने आपको गुरु-चरणों में समर्पित कर गौरव का अनुभव करता है। आपके असीम हृदय की असीम उदारता के कारण हजारों व्यक्ति अपनी समस्याएँ, शिकायतें तथा याचनाएँ लेकर आते हैं, जिन्हें आप सदैव सन्मान एवं आदरपूर्वक सुनते हैं तथा यथासम्भव उनका तत्काल निराकरण करते हैं। आपका करुणासागर हृदय, पर-दुख-कातर है व सदैव ही दोनों के दुःख से पसीजता रहता है । दीन व्यक्ति, दुःखी व्यक्ति आपके दर्शन मात्र से आत्मिक शांति एवं एक अलौकिक आनन्द का अनुभव करता है। ___एक चमकती ज्योति प्रातःस्मरणीय, संतरत्न, शान्ति निकेतन, दिव्य संस्कारों की प्रतिच्छाया, त्यागी एवं तपस्वी प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज साहब भी भारत के एक महान संत हैं । आपके दिव्य गुणों का स्मरण करना भी इस पुण्य पर्व पर अतिशयोक्ति नहीं कहा जा सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy