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संकलनकर्ता
मुनि नरेन्द्र 'विशारद' [मेवाडभूषण श्री प्रतापमलजी महाराज के शिष्य ]
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भक्ति और भगवान
भगवान की शांत मुख-मुद्रा से शान्ति का
वह अनुपम झरना झरता है कि देखने वालों के चित्त में भी शांति का आभास होने लगता है। तीर्थंकरों की प्रशान्त छाया में जो
महाराज के भी पहुँच जाता है; वह देहधारी त्रय-ताप से विमुक्त होकर अद्भुत शान्ति का अनुभव वचन और विचार करने लगता है । यहाँ तक कि भगवान के
समवसरण में पहुँचकर जन्म-जात वैरी - सिंहबकरी, कुत्ते-बिल्ली उसी प्रकार अन्य शत्रुमित्र अपने वैर-भाव को भूलकर एक अनूठे प्रेम स्नेह सरोवर में अवगाहन करने लगते हैं । यह वास्तविक भाव-भक्ति का प्रभाव ही कहा जायगा कि इस शांत एवं सुन्दर मुख छवि को निहारता ही रहे, तो भी भक्त का मन बता नहीं है ।
प्रवर्तक श्री हीरालालजी
धर्म रूपी दुकान
जैसे किसी कपड़े वाले की दुकान पर जाएं तो वह तरह-तरह की डिजायनों के रंग-बिरंगे कपड़े दिखाएगा । सर्राफ की दुकान पर आपको तरह-तरह के स्वर्णाभूषण देखने को मिलेंगे । वैद्य की दुकान पर हर बीमारी की दवा मिलेगी । हलवाई की दुकान पर तरह-तरह की मिठाइयाँ सजी हुई देखने को मिलेंगी। जैसे संसारी दुकानों पर आपको घरेलू आवश्यकता से सम्बन्धित चीजें प्राप्त
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