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मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ
महामनस्वी के वरदान स्वरूप चरण-कमलों में श्रद्धा-भक्ति के सुमन - समर्पित कर मैं आपश्री का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ । आराध्यदेव से प्रार्थना करता हूँ कि आप द्वारा सकल मानव समाज को सदैव मार्गदर्शन मिलता रहे ताकि भूलाभटका मानव समाज धर्म को भूले नहीं । इन्हीं चन्द-विचारों के साथ मैं अपनी लेखनी को विश्राम देता हूँ
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भारत के हे संत ! तुम्हारा, जीवन है जग में आदर्श । पापी पावन हुए तुम्हारी चरण-मणि का पाकर स्पर्श ॥
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