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जीवन दर्शन ६३ जैनधर्म की महती प्रभावना हुई । क्रमशः दशलाक्षणी पर्व समारोह, विश्व मैत्री दिवस, विश्व कल्याण जयोत्सव, जैन दिवाकर जयन्ती, लोकाशाह स्मृति दिवस आदि अनेकों प्रभावशाली आयोजन सफल रहे। प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्रकुमारजी तथा अक्षय कुमारजी आदि अनेक विद्वानों के सम्पर्क में आए। धर्म प्रचारार्थ किये गये आयोजनों से इस वर्ष का यह वर्षावास आशातीत सफल रहा। जिसका श्रेय अधिक रूप से गुरुप्रवर श्री प्रतापमलजी महाराज एवं चरित्रनायक श्री हीरालालजी महाराज को दिया जा सकता है जिनकी उदार भावना ने सभी को मैत्री-भाव के सूत्र में बांध रखा।
नेहरू-मुनि-मिलन ता० १८-११-५१ को प्रातः ६ बजे गुरुप्रवर श्री प्रतापमलजी महाराज, प्रवर्तक श्री हीरालालजी महाराज आदि मुनि-मण्डल भारत के प्रधान मन्त्री पण्डित जवाहरलाल जी नेहरू को बंगले में दर्शन देने के लिए पधारे। यहां पर संसद के सदस्यों एवं केन्द्रीय मन्त्रियों ने मुनिद्वय का योग्य सत्कार-सम्मान किया। प्रधान मंत्री ने भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुसार मुनिद्वय को वन्दन कर कुछ सामयिक वार्तालाप भी किया। इस सन्दर्भ में प्रधान मंत्री को जैन दिवाकर जी महाराज द्वारा संग्रहीत "निर्ग्रन्थ प्रवचन" (अंग्रेजी अनुवाद) भेंट किया।
मनि और विनोबा भेट ता० २१-११-५१ को प्रातः ८ बजे मुनिद्वय (श्री प्रतापमलजी महाराज, श्री हीरालाल जी महाराज) की महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी भूदान यज्ञ के याज्ञिक आचार्य विनोबा भावे से भेंट हुई। इस अवसर पर विनोबाजी ने जैन मुनियों के पैदल विहार का बहुत ही समर्थन किया एवं प्रशंसनीय बतलाया। इसी संदर्भ में प्रेमावेश में विनोबा जी बोले-“पैदल चलने के कारण मैं भी जैन साधु हूँ।" खादी के प्रसंग पर आपने आचार्य श्री जवाहरलाल जी महाराज की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
___सं० २०१० का कलकत्ता वर्षावास : एक मधुर स्मृति ये कौन, कहाँ जा रहे हैं ? ऐसे तो साधारण जान पड़ रहे हैं; परन्तु आकृतिप्रकृति से महान् जान पड़ रहे हैं। तभी तो बड़े-बड़े सेठ साहूकार इनके चरण चूमते दिखाई दे रहे हैं।" उक्त उद्गार बंगाली जनता के हैं, जो पारस्परिक वार्तालाप कर रहे थे।
चातुर्मास के दिन निकट आ चुके थे। किन्तु पहले से ही श्रावक-श्राविकाओं के बीच धर्म-ध्यान एवं जप-तप की होड़ा-होड़-सी लग गई थी। एक तरफ भक्त-मण्डली की ओर से धर्माराधना की झड़ी तो दूसरी ओर हमारे चरित्रनायक के मुख रूपी मेघ से अमृत झड़ी तो तीसरी ओर से इन्द्र की प्रसन्नता से जल वृष्टि । इस त्रिवेणो तीर्थ में डुबकी लगा-लगाकर भावुक वृन्द सुखानुभूति कर रहे थे। आशातीत शासन प्रभावना हुई।
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