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- प्रियदर्शी सुरेश मुनि, शास्त्री [ मेवाड़भूषण श्री प्रतापमलजी महाराज के प्रशिष्य ]
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___ महिमा-मंडित मालव मही बहुमुखी प्रतिभा के धनी एक कवि की भाषा में
मालव देश सुहावनो, वरते सदा सुकाल। प्रवर्तक श्री हीरालालजी सरवर भरिया नीर सं, सुखी बाल गोपाल ।
महाराज
मालव की पुण्य भूमि अत्यन्त गौरवशालिनी रही है । धन-धान्य एवं ऐश्वर्य सम्पन्न होने के साथ-साथ चिरकाल से यह नर-रत्नों की खान भी है। जो मानव एक बार शस्य-श्यामला मालव माँ का दर्शन कर लेता है, वह कभी भी इसकी छवि को भूल नहीं सकता है । दूर-दूर तक फैले हुए हरीतिमा युक्त विशाल मैदान, कल-कल ध्वनि से प्रवाहित सरिताएं एवं जहां-तहाँ प्रस्थापित कलात्मक प्राचीन स्थान, सचमुच ही दर्शकों को प्रभावित किये बिना नहीं रहते । ऐसा कहा जाता है-मालव वह पुण्यभूमि है जहाँ कभी अकाल के दर्शन नहीं होते। मालव वह पुण्यभूमि है जहाँ भूखा और प्यासा कोई व्यक्ति नहीं सोता। मालव वह पुण्यभूमि है-जहाँ अकालपीड़ितों और मरुभूमि के निवासियों को खुले दिल शरण मिलती है। ऐसी महान् पवित्र भूमि के दर्शन कर कौन धन्य नहीं होगा? उसके लिए यह अभिव्यक्ति अक्षरशः सत्य है
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