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अभिनन्दन-पुष्प
यथानाम तथागुण !
"कस्तूरी कुण्डल बसे, मृग ढूंढ़े वन मांहि" आपश्री ने अपने अन्तस रूपी 'कुण्डल' में संस्थित अलौकिक आध्यात्मिक तत्त्व रूपी 'कस्तूरी' को सद्ज्ञान एवं गहन चिन्तन के माध्यम से प्राप्त कर उक्त उक्ति को निरर्थक एवं निस्सार सिद्ध कर दिया है। "कस्तूर सौरभ" से सुरभित 'चन्द्र' के सदृश्य आपश्री का गौरवगरिमा युक्त विमल व्यक्तित्व अनुपमेय, अपराजेय एवं अगम्य है। अमृतमय सन्त शिरोमणि !
आज इस पावन-अमृत-महोत्सव की परम-पुनीत पुण्य बेला में भाव भक्ति-भरित यह 'सयशः प्रशस्ति-पत्र' आप अमृत सन्तवर के कान्त कराम्बुजों में सादर-सश्रद्धा समर्पित करते हुए हम स्वयं को धन्य एवं महान् गौरवशाली अनुभव कर रहे हैं। तथा श्री शासन देव से आपश्री के चिरायुष्य की विनम्र प्रार्थना करते हुए आश्वस्त होते हैं कि-यह मांगलिक अवसर निकट भविष्य में ही अवश्य आये जबकि आपश्री के सुखद सान्निध्य में आपश्री का गौरवमय शताब्दी महोत्सव हम स-समारोह मना कर आत्म-तुष्टि प्राप्त कर सकें।
"तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय' हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मर्त्य से अमृत की ओर ले चलो । युग-युग तक गुरुदेव आप का, रहे संघ पर वरदहस्त ।
करें शतायु पूर्ण आप, नित रहें आपश्री अमर, स्वस्थ ।।
विनयावनत अखिल भारतीय चतुर्विध जैन संघ एवं श्री मज्जैनाचार्य श्री मन्नालाल जी महाराज
शताब्दी समारोह तथा । पूज्य गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज अमृत महोत्सव स्वागत समिति
रतलाम (म० प्र०)
दिनांक-३ मई, १९७१
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