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४२ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ
पं० महेन्द्रकुमारजी द्वारा सम्पादित अनुवादित (मूल) और स्वतंत्र रूप से लिखी गयी उनकी प्रायः सभी कृतियोंको अत्यधिक नजदीक से देखने-पढ़ने का मौका मिला। इस प्रसंग में उनके द्वारा सम्पादित लगभग सभी मूलग्रन्थोंका एक-एक पन्ना पलटा है और कभी-कभी पंक्ति पंक्तिको देखा है, पढ़ा है । उस सबको देखकर - अनुभव कर दाँतों तले उँगली दबानी पड़ती है । उनकी सम्पादन पद्धति आधुनिकताके साथ प्राचीनताको भी साथ में लिए है, जो कि अपने आपमें अनूठी एवं बेजोड़ है ।
जैन और जैनेतर ( वैदिक, बौद्ध, सांख्य, योगादि ) शास्त्रीय सन्दर्भों प्रसंगोंकी उनको जो स्मृति, उपस्थिति और जानकारी रही है, उससे पंडितजी की जन्मजात प्रतिभा, अथक अध्यवसाय, स्तुत्य स्मरणशीलता, अगाध विद्वत्ता और प्रखर दार्शनिकताका सहज पता चलता है । आधुनिक सम्पादनपद्धति और तुलनात्मक अध्ययनकी दृष्टिका पंडितजीने यथासम्भव बखूबी उपयोग किया है ।
पं० महेन्द्रकुमार जीकी उपर्युक्त विद्वत्ता, प्रतिभा, अध्ययन-अध्यापन क्षमता, स्मरणशीलता, अथक अध्यवसाय आदिको देखकर मैं उन्हें महान् दार्शनिक आद्य शंकराचार्य के नज़दीक देखता हूँ ।
प्रो० महेन्द्रकुमार जीने अल्प आयुमें ही जो-जो कार्य कर दिये, वे कार्य शायद अनेक विद्वानोंकी टीमसे भी संभव न हो पाते। उनके द्वारा लिखी गयी ग्रन्थोंकी तुलनात्मक समीक्षात्मक एक-एक प्रस्तावना अलग-अलग पी-एच० डी० की उपाधि की योग्यता और समकक्षता रखती हैं । यह उनका कृतित्व ही है जो पण्डितजीकी अमर गाथा गाता रहेगा । उन्होंने भारतीय दर्शन विशेषतः जैनदर्शनकी जो सेवा की है, वह असाधारण एवं आश्चर्यं पैदा करनेवाला है । जैन-धर्म-दर्शन के प्राचीन क्लिष्ट, दुरूह, महनीय एवं विशाल दर्शनपरक शास्त्रोंका उन्होंने जो असाधारण योग्यता- विद्वत्ता और कठिन परिश्रमसे सम्पादनादि - अनुवादादि कार्य किया है, तुलनात्मक तथा चिन्तनपूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखीं हैं वह शायद पंडित महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य के ही वशकी बात रही है ।
इस महान् विद्वान्, दार्शनिक और लेखक के प्रति मैं अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि समर्पित करते हुए गौरव का अनुभव करता हूँ ।
गम्भीर अध्येता
आयुर्वेदाचार्य भैया शास्त्री, शिवपुरी एवं समस्त शास्त्री परिवार
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जैन सिद्धान्त एवं न्यायदर्शनके चिंतन मननशील गम्भीर अध्येता समस्त ज्ञान के भण्डार वर्णीजीके पश्चात् सर्वप्रथम न्यायाचार्य बननेवाले डॉ० महेन्द्रकुमारजी की सेवाएँ चिरस्मरणीय रहेंगी। प्रायः अच्छी वस्तुका संयोग थोड़े ही दिन रहता है, पं० जीसे बड़ी भारी आशायें थीं कि डॉ० सा० जैनधर्मका प्रचारप्रसार बड़ी द्रुत गतिसे करेंगे किन्तु असमयमें ही हमारे बीचसे उठ गये ।
इतने अल्पसमय में जो भी पं० जी०ने किया वह थोड़ा नहीं है, उनके द्वारा सम्पादित, अनूदित दार्शनिक ग्रन्थ, टीका ग्रन्थ, मौलिक रचनाएँ आगामी पीढ़ीके शोधार्थी विद्वानोंको ज्ञानाराधन करानेके मार्गदर्शन देकर पर्याप्त सहायक होंगे ।
स्मृति ग्रन्थ द्वारा दिया गया सम्मान चिरस्मरणीय रहेगा, हम सभी शास्त्री परिवार जन उनके प्रति कृतज्ञता प्रस्तुत करते हुए अपने अनन्त श्रद्धा सुमन समर्पण करते हैं ।
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