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वे सदा चिरस्मरणीय रहेंगे
• स्वामी सत्यभक्त, वर्धा
डॉ० महेन्द्रकुमारजीका मुझसे घनिष्ठ परिचय था । बनारस और इन्दौरके विद्यालयोंकी सर्विस छोड़ कर जब मैं दूसरी जगह चला गया तब ये उन विद्यालयों में पढ़ने गये। इसके बाद मिलनेका और पत्र व्यवहारके बहुत अवसर आये । वे मुझे एक तरहसे गुरुका सम्मान देते थे । और मेरे द्वारा लिखित बहुत-सा साहित्य भी उनने पढ़ा है ।
इसमें सन्देह नहीं कि महेन्द्र कुमारजी बहुश्रुत और विविध विषयोंके अच्छे विद्वान् थे । यह दुर्भाग्य है कि वे जल्दी चले गये अन्यथा समाजको उनकी बहुत जरूरत थी ।
१ / संस्मरण : आदराञ्जलि : ११
४ वर्षकी उम्र के बाद मैं दमोह निवासी बन गया । और गर्मियोंकी छुट्टी में हर वर्ष दमोह आया करता था । इस प्रकार दमोह मेरा घर हो था । सन् १९३६ में जब मेरे पिताजीका देहान्त हुआ उसके बाद घरके रूपमें दमोहका स्थान छूट गया ।
यह प्रसन्नताकी बात है कि महेन्द्रकुमारजीका सम्बन्ध दमोहसे कई तरहसे आया है । उनके जाने से मुझे काफी दुःख हुआ है। फिर भी अपने थोड़ेसे जीवनमें जो उनने असाधारण साहित्य सेवा और समाज सेवा की है उससे वे सदा चिरस्मरणीय रहेंगे ।
उनकी विद्वत्ता विरल थी
• श्री यशपाल जैन, दिल्ली
पण्डितजीने जैन समाज तथा जैनधर्म और दर्शनकी जो सेवा की है, वह सराहनीय है । उनकी विद्वत्ता विरल थी। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यन्त यशस्वी था । वह एक ऐसे साधक थे, जिनका स्थान सदा अक्षुण्ण रहेगा ।
मुझे पण्डितजीके सम्पर्क में आनेका विशेष अवसर मिला था । उनकी सौम्यता और सादगी की मेरे मनपर बड़ी गहरी छाप है। सच यह है कि इतने विद्वान् होते हुए भी उन्हें कभी अपनी विद्वत्ताका गर्व नहीं हुआ । वह अत्यन्त सरल और निश्छल थे । सेवा उनका धर्म था । उन्हें स्मृति ग्रन्थ अर्पित करके भारतीय समाज उपकृत होगा ।
हार्दिक कामना
• डॉ० प्रभुदयालु अग्निहोत्रो, भोपाल
पं० महेन्द्रकुमारजी मेरे निकट मित्रोंमें थे और जो कुछ भी लिखते या प्रकाशित कराते थे उसकी एक प्रति वह मुझे अवश्य भेजते थे । उनके द्वारा भेंट की हुई उनकी पुस्तक "जैनदर्शन" मेरे पास सुरक्षित है । वह न केवल जैनदर्शन, अपितु भारतीय दर्शनको अन्य शाखाओं में भी निष्णात थे । अनेक वर्षों तक मेरे और उनके बीच भाईचारा रहा ।
आपका आयोजन सफल हो, यह मेरी हार्दिक कामना है ।
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