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४ / विशिष्ट निबन्ध : २५७ का व्यक्ति और समाजसे आगे राजनैतिक क्षेत्रमें उपयोग करनेका जो प्रशस्त मार्ग सुझाया था और जिसकी अटूट श्रद्धामें उनने अपने प्राणोंका उत्सर्गं किया, आज भारतने दृढ़ता से उसपर अपनी निष्ठा ही व्यक्त नहीं की, किन्तु उसका प्रयोग नव एशियाके जागरण और विश्वशान्तिके क्षेत्रमें भी किया है । और भारतकी 'भा' इसमें है कि वह अकेला भो इस आध्यात्मिक दीपको संजोता चले, उसे स्नेह दान देता हुआ उसीमें जलता चले और प्रकाशकी किरणें बखेरता चले । जीवनका सामंजस्य, नवसमाज निर्माण और विश्वशान्तिके यही मूलमन्त्र हैं । इनका नाम लिये बिना कोई विश्वशान्तिको बात भी नहीं कर सकता ।
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