________________
EXOX
साहित्य के मेरु शिखर अज्ञानतिमिराच्छन्न संसारको अपनी ज्ञानगरिमाके द्वारा आलोकित करने वाले महामनीषी विद्वद्वर्य पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य के समान जैनजगत्में विरले ही विद्वान् हुए हैं। प्राचीन परिपाटीके चिरन्तन सत्यान्वेषणके अनुपम तत्त्वानुसंधान में तत्पर पं० जी के व्यक्तित्व व कृतित्व से कौन सहृदय व्यक्ति आकृष्ट एवं सश्रद्ध नतमस्तक नहीं होगा।
__ पं० जी जैनदर्शन, न्याय, धर्म व साहित्यके अद्वितीय 'मेरुशिखर' थे । उनका पांडित्य प्रभावपूर्ण व तलस्पर्शी ज्ञानसे ओतप्रोत था। उनका संपूर्ण जीवन ही माँ जिनवाणो सरस्वतीकी सेवामें समर्पित हुआ। जैनदर्शन, धर्म तथा संस्कृतिके उत्थान में पं० जी का जो 'न भूतो न भविष्यति' वाला अनुपम योगदान है, वह श्रमण-संस्कृति के इतिहासमें सदा अमर रहेगा।
॥ इति भद्र भूयात् ।। वर्धतां जिनशासनं ॥
स्वास्तिश्री भट्टारक चारुकोति स्वामीजी, मूडबिद्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org