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________________ ६१८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ दशमाध्यायमें केवलज्ञानकी प्राप्तिके कारणोंपर प्रकाश डालकर मोक्षका स्वरूप तथा मुक्त जीबोंमें जिन क्षेत्र, काल आदि १२ अनुयोगोंसे वैशिष्टय होता है उनका स्पष्टीकरण है। "तत्त्वार्थसूत्र" जिनागमका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, यह सर्वमान्य बात है। इसमें प्रथमानुयोगको छोड़कर शेष तीन अनुयोगोंका सार संगृहोत है। इसके विधिवत् स्वाध्यायसे जिनागमका अच्छा ज्ञान हो जाता है । पर्युषण पर्वमें इसीका प्रवचन सर्वत्र चलता है और अतिरिक्त समयमें भी सबलोग इसके प्रति अपार श्रद्धा रखते है । मेरी रायमें पंडित फूलचन्द्रजी द्वारा रचित इस हिन्दी टीकाको एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए । पठन-पाठन के लिए तो यह छात्रोंके लिए बोझिल होगी, पर विद्वानोंको अपना ज्ञान परिपक्व करनेके लिए परमसहायक सिद्ध होगी। टीकामें कुछ विषय ऐसे अवश्य है जिनपर विद्वान् चर्चा किया करते हैं, पर उन अल्प विषयोंको गौणकर टीकाका स्वाध्याय करें और प्रवचनकर्ता इसे मनोयोग पूर्वक पढ़ें तो उनके ज्ञानमें परिपक्वता नियम से आवेगी। पंचाध्यायी टीका : एक अध्ययन पण्डित नाथूलाल शास्त्री, इन्दौर देशके लब्धप्रतिष्ठ प्रकाण्ड विद्वान सिद्धान्ताचार्य श्री पण्डित फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री, वाराणसीकी साहित्य सेवाओंके प्रति जितनी भी कृतज्ञता प्रदर्शित की जावे, थोड़ी है । उनकी अनेक महत्त्वपूर्ण रचनाओंमें एक पंचाध्यायी हिन्दी टीका भी है । अजमेर शास्त्र भण्डारसे प्राप्त हस्तलिखित पंचाध्यायीका अध्यापन श्री पण्डित बालदेवदासजीके बाद गह गोपालदासजी बरैयाने मुरैना महाविद्यालयमें श्री पण्डित वंशीधरजी न्यायालंकार, श्री पंडित मक्खनलालजी एवं श्री पंडित देवकीनन्दनजी व्याख्यानवाचस्पति आदि उनके प्रमुख शिष्योंको पढ़ाते हुए श्री पं० मक्खनलालजीसे उसका हिन्दी अनुवाद कराया था । वह अपूर्ण ग्रन्थ शास्त्री परीक्षाके पाठ्यक्रममें हो जानेसे व छात्रोंके पठन-पाठनमें उपयोगमें आने लगा है। पंचाध्यायी ग्रन्थको ग्रन्थकारने पाँच अध्यायोंमें लिखनेका संकल्प किया था परन्तु उपलब्ध ग्रन्थ केवल डेढ़ अध्यायमें ही है । सम्भव है लिखते हुए ग्रन्थकारका स्वर्गवास हो गया हो।। इस ग्रन्थके रचयिताके सम्बन्धमें श्री पंडित मक्खनलालजीने गम्भीर और महत्त्वपूर्ण रचनाकी दृष्टिसे आचार्य अमतचन्द्रके नामका उल्लेख किया है। पंडितजीने अपनी आलोचनात्मक ग्रन्थ "आगम मार्ग प्रकाश" में पंचाध्यायीके सम्बन्धमें विस्तारसे विवेचन किया है। श्री पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तारने पंचाध्यायीके कर्ता पंडित राजमलजीको माना है । श्री पंडित फूलचन्द्रजीने भी इन्हींको उक्त ग्रन्थका कर्ता स्वीकार किया है। हमारी दृष्टिमें भी पंचाध्यायोकी रचना आचार्य अमृतचन्द्रकी नहीं है । पंचाध्यायीके जो शंका समा'धानके रूपमें अनेक श्लोक है, उनमें अधिक विस्तार हो गया है जो अमृतचन्द्र सूरीकी शैलीके अनुरूप नहीं । जबकि अमतचन्द्र सरीकी भाषामें प्रौढता और सूत्र रूप शब्दावली दृष्टिगोचर होती है। ग्रन्थकर्ता अपना नाम ग्रन्थके अन्तमें दिया करते हैं। जब यह ग्रन्थ पूर्ण ही नहीं हो सका तो ग्रन्थकर्ताको अपना परिचय देनेका अवसर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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