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________________ ४१२ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्रो अभिनन्दन-ग्रन्थ ३५ वर्ष पूर्व एक छतरी, जिसमें चार कोणोंमें चार खम्भे थे, जो अभी भी चैत्यालयकी वेदीके चारों कोणोंमें लगे हुए हैं । बनवा दी । छतरी वही पुरानी है । (२) वि० सं० १८७४ जो मल्जशादी नागपुरवालोंकी ओरसे मेला भराया गया था उसमें पूरे समाजके साथ श्री केसरी दाऊ नौने गोरेलाल, बाबूलाल और गरीबदास भी आये थे। जिनका मेलाके समय ही धर्मध्यान पूर्वक स्वर्गवास हो गया था । उनमेंसे श्री केसरी दाऊका स्वर्गवास विशेष उल्लेखनीय है । सम्मति रजिस्टरमें लिखा है कि जब श्री दाऊ श्री चैत्यालयमें वन्दना पूर्वक लीन प्रदक्षिणा देकर साष्टांग नमस्कार कर रहे थे तब समस्तके भूमि स्पर्श करते समय मंगल पाठ पढ़ते हुए उनका स्वर्गवास हुआ था । आज भी इस घटनाको इन शब्दोंमें स्मरण किया जाता है दीनी परिक्रमा अर तिलक को विचार वाँध महाबुधवान ऐसे बहुगुणभगे हैं, दर्शनको नाये शीश धीध्र देव-गुरु वन्दन कीन्हें लेकर जिननाम परमहितकारे हैं। आगे सवल निसान बाजे पीछे गजराज साजे उसंध मिलका क्रिया उचारे हैं, केसरी दाउकी करनोंकी वरजी कहाँ तोक कहो स्वामीसे विदा माग परमधामको सिधारे हैं । यह एक ऐसी घटना थी इससे पूरा समाज तो प्रभावित हुआ ही, श्री केसरी दाड कुटुम्बीजन भी प्रभावित हुए बिना न रह सके । फलस्वरूप उनके छोटे भाईने श्री केसरी दाडको हिस्सेकी परी सम्पतिसे लग्डा कर समाजकी मार्फत छतरीके चारों और बारह दरीका मण्डप बनवा दिया ।। यह निर्माण कार्य होनेसे छतरी सहित छतरीका मूल्य रूप दृष्टि ओझल हो गया, पर उसे बदला महीं गया। (३) आज वेदीके ऊपर जो शिखर बनी अदृष्टिगोचर होता है वह बारह दरी बननेके बाद नागपुर वाले सेठ मल्लू सावने बनवाया है। साथ ही पूर्व दिशाका मुख्य द्वार भी उन्हींकी ओरसे बनवाया गया है । ४) इसके बाद पर्व दिशाके दरवाजेके पीछे पश्चिमकी ओर दरवाजेसे लगी हई पीले पत्थरोंकी त्तिहयारी वि० सं० १९५६ में आगासोद निवासी सेठ हरचन्दने बनवाई है। (५) निसईजीके चारों ओर पक्का परकोटा, दहलान चारों दिशाओंमें बने हुए आटा और दक्षिणकी ओर बड़ा हाथी दरवाजा बना हुआ है वह सब निर्माण कार्य वि० सं० १९३० से लेकर १९६० के भीतर खुरई निवासी चौधरी दयाचन्दजीकी देखरेखमें समाजकी ओरसे अठा बना हुआ है वह मिर्जापुर निवासी सेठ जमुनादास पन्नालालकी ओरसे बनवाया गया है तथा हाथी दरवाजेके ऊपरका शिखर टिमरनी निवासी भाई ठाकुरसी लालने बनवाया है । (६) इसके बाद सं० २०१० में सागर निवासी समाज भूषण श्रीमन् सेठ भगवानदासजीकी ओरसे (१) स्वाध्याय भवन, (२) छात्रावासके कमरे, (३) वेदीजीकी उत्तर दिशाम ब्रह्मचारी निवास और वेदीका विस्तार करनेके अभिप्रायसे उसके चारों ओर १२ कमरे यह सब निर्माण कार्य कराया गया। (७) श्रीनिसईजीसे पश्चिम दिशामें लगभग २५० गज दूर श्रीमन्त सेठ कुन्दन लाल हजारीबालजी मानोरावालोंने ब्रह्मचारी कुटीका निर्माण करा उसकी सेल्लास बड़े समारोहसे उद्घाटन विधि सम्पन्न कराई। (८) श्री ब्र० गुलाब चन्दजीने वि० स० में ब्रह्मचर्य दीक्षा ली थी। अतः उसको पुण्यस्मृतिमें वारी टोडा निवासी श्री लक्ष्मीचन्दजीने क्षेत्रकी दक्षिण दिशामें एक सुन्दर निवास स्थानका निर्माण कराया । तथा इसकी पश्चिम दिशामें गंज बासौदा निवासी सेठ चुन्नीलाल जवाहरलालने ३०,००० रु० व्यय करके अतिथि भवनका निर्माण कराया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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