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३९० : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
सलितं' शब्द आया है । कण्ठ और गलेमें अन्तर है। कण्ठ गलेका भीतरी अवयव है और गला बाहिरी । इससे स्वामीजीके समग्र जीवनपर प्रकाश पड़ता है। मालूम पड़ता है कि वे हृदय द्वारा स्वभावभूत अनन्त गुणोसे सुशोभित आत्माका निरन्तर चिंतन करते रहते थे और कण्ठ द्वारा उनका गुणगान करते रहते थे। उनके द्वारा रचित शास्त्र उन्हीं दोनोंके कण्ठ और हृदयके उच्छवासमात्र हैं। यह उनका २४ घण्टोंका प्राकृतिक जीवन बन गया था। उन्हें इसकी चिन्ता नहीं कि कौन उनका समर्थन करता है और कौन उनका विरोध करता है। उन्होंने बाह्यमें विधि-निषेधसे अपनेको परे बना लिया था। इतना अवश्य है कि जो उनसे अनुप्राणित होते थे उन्हें उनकी बाह्य परिणतिके उपदेशके साथ ही अध्यात्मका घुट पिलाते थे। जो जिसका अनुषंगी है उसका उपदेश वे अवश्य देते थे। वे किसी वेशके पुजारी नहीं थे, आत्मधर्मके पुजारी थे। घर-वार छोड़ना और बात है, अध्यात्मका पुजारी होना और बात है ।
गुणमाला बत्तीसीके अन्तमें ग्रन्थ समाप्ति वचन आया है । यथाइति श्री मालारोहण जी नाम ग्रन्थ जिन तारण तरण विरचित समुत्पन्नता ।।
लोकमें इसे मालारोहण भी कहते हैं । स्वामीजीने इसे गुणमाला" कहा है। मेरे ख्यालसे यह ग्रन्थका उपयुक्त नाम है। स्वामीजीने इसमें इसी नामका उल्लेख किया है । अस्तु ।
श्री पण्डित पूजा उपोद्घात
यह स्वामीजी द्वारा रचित दूसरी बत्तीसी है। खुरई चैत्यालयके ठिकानेसारमें ग्रन्थका परिचय मात्र दिया है । लिखा है
पंडित पूजाकी विधि-पंडित पजाकी पहचत्तरि पुजनिरूपणं। ओंमकारमें पंच परमेष्ठी देवकी पूजा पंच अषिर (अक्षर) संयुक्ता गाथा चारलौ ४, श्रुतपूजा पंचई गाथा ५, छठी गाथा गुरुपूजा वारा पुंज पूरे । सातइ गाथा संभिक्त विर्ज सिद्धको जंत्र त्रिलोकं लोकीनं धुवं अरिहंतकौ जंत्र रत्नं त्रयं मयं सुधं ये तीन जंत्र साधुके गाथा ७, आठई गाथामें धर्म सुधं च वेदंते आचार्ज उपायदेवको जंत्रु ।
मल्हारगढ़ निसईजीकी प्रतिमें पण्डित पूजा बत्तीसीके विषयमें लिखा है-ॐकारमें पंच परमेष्ठीदेवकी पूजा पंच अषिर संजुक्त ।। गाथा चार लौ ॥४॥ श्रुतपूजा ॥ पंचैइ गाथा ॥५॥ छटि गाथा गुरुपूजा ॥ बारह पुंज पूरे । सातइ गाथा ॥ संभिक्त वीजें ॥ सिद्धको जंत्रु ।। सातइ गाथा ॥ त्रिलोक लोकीतं ध्रुवं ।। अरहंतको जंत्र ॥ सातई गाथा मैं रत्नत्रयं मये सुधं ॥ ये तीन जंत्र साधुके गाथा सातई ॥७॥ आठई गाथामैं धर्म सुखं च वेदंते । आचार्य उपायदेवको जंत्रु ।। पूजा जंत्रु की विधि ।
पंडित पूजाके ठिकाने गंज बासौदा-चार गाथा देवकी पूजा पूजा पंच परमेष्ठी संयुक्तं ।४। पांचई गाथामै श्रतपूजा चारनियोग संयुक्तं ।५। छठई गाथामैं गुरुकी पूजा तीन रत्नसंयुक्तं ।६। बारह पुंज संयुक्तं । सातई गाथामें सम्यक्त्व वीर्य सिद्धि को जंत्र अष्टगुण संयुक्त सिद्धके ।१। त्रिलोकं लोकन्त ध्रुवं । अर्हन्तको जंत्र येक ।१। सोलहि कारण संयुक्तं ।१६। रत्नत्रियमयं सुधं साधुके तीनि जंत्र दर्शणके अंग । न्याणके अंग ।८। तेरहि विधि चारित्र । साधु जंत्र संयुक्तं । सातई गाथामै धर्म शुद्ध ः व्यंवन्दतेः उपादेव आचार्यको जंत्र दसविधो धर्म संयुक्तं । गाथा अठाईमैं ॥८॥ नमई गाथामें स्नांपतिकी जुक्ति कही चार विधको जल नौमैं प्रवाहुजल कहौ, ध्यानसेमैं त्रीवरजल कहौ । गाथा दसईमैं न्याणंभयंजलं शुद्धं । व्यापकि जल कहौ । गाथा ग्यारहिमैं सम्यक्तं-जलं-शुद्ध कूप जल कही। वारहि गाथामैं ॥१२॥ आत्मसौधन दृष्टिसोधन तेरहीं गाथामें प्रक्षालकी जक्ति कहीं पन्द्रवी गाथामैं वस्तरिकी जुक्ति कहीं । पाग पिछौरी धोती अंदोगी वस्त्रभेद ॥४॥ सोरही गाथामै
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