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________________ जैनधर्म और वर्णव्यवस्था हमारे देशमें चार वर्णोंमें अन्तिम वर्णके मनुष्य शद्र माने जाते हैं। ये मानव तनधारी सबसे अभागे प्राणी हैं। हजारों वर्षोंसे ब्राह्मणोंने क्षत्रियोंसे साजिश करके इनसे सब अधिकार छीन लिये हैं। इन्हें जनेऊ पहिनने, व्रत-संस्कार करने आदिका कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इतना ही नहीं, ये न तो दूसरे वर्णके मनुष्योंके साथ बराबरीसे बैठ-उठ सकते हैं और न सार्वजनिक स्थान जैसे प्रार्थनागृह, मन्दिर और धर्मशाला आदिमें आ-जा सकते हैं । इनकी शिक्षा और स्वास्थ्यकी ओर भी समुचित ध्यान नहीं दिया गया है ! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्योंकी सेवा करते रहना यही इनका स्वर्ग है और यही इनकी मुक्ति !! भारतीय संविधान और रूढ़िवादी जैन भारतवर्षको स्वराज्य मिलनेके बाद भारत सरकार और जनप्रतिनिधियोंका इस ओर ध्यान गया है। भारतीय संविधान सभाने जिस संविधानको स्वीकार किया है, उसमें दो सिद्धान्त निश्चित रूपसे मान लिये गये हैं। १. हम मनुष्योंमें किसी भी प्रकारकी अस्पृश्यता नहीं मानते । २. हिन्दुओंके प्रत्येक सार्वजनिक स्थान और सम्पत्तिका, चाहे वह मन्दिर, धर्मशाला या ट्रस्ट ही क्यों न हो, सभी हिन्दू समान रूपसे उपयोग कर सकते हैं । यह तो मानी हुई बात है कि हिन्दू शब्द किसी धर्म विशेषका वाची नहीं है। सुदूरपूर्व कालसे जितने धर्मोके मनुष्य यहाँ निवास करते थे और जिन धर्मोके प्रवर्तक यहाँ जन्मे थे, वे सब हिन्दू शब्दकी व्याख्यामें आते हैं । इस व्याख्याके अनुसार न केवल वैदिक धर्मके अनुयायी हिन्द ठहरते हैं अपितु जैन, बौद्ध और सिखये भी हिन्द ही माने जाते हैं । संविधानकी २५वों धाराके नियम नं० २ में इस बातका स्पष्ट रूपसे उल्लेख कर दिया गया है कि Hindu includes Jain, Bauddha and Sikhas, जहाँ तक हम देखते हैं सिखों और बौद्धोंको इसमें कोई आपत्ति नहीं हैं। वे इस तथ्यको न केवल स्वीकार करते हैं, अपितु इसका प्रचार भी करते हैं; क्योंकि इसमें वे अपना सांस्कृतिक लाभ देखते हैं। राहल जी ने अनेक बार लिखा है कि हमें किसी भी हालतमें अपनेको हिन्दू कहलाना नहीं छोड़ना है। किन्तु कुछ रूढ़िवादी जैन इस तथ्यको स्वीकार करनेसे हिचकिचाते हैं। उनके सामने मुख्य प्रश्न जैन मन्दिरोंका है । उन्हें भय है कि हिन्दू शब्द की उक्त व्याख्या मान लेने पर हमें जैन मन्दिर कथित अस्पृश्योंको खोलने पड़ेंगे; जबकि वे इसके लिए तैयार नहीं हैं । इस समय जैन समाजमें विवाद दो स्तरों पर चल रहा है। प्रथम तो यह कि "जैन हिन्द हैं या नहीं, और दूसरा यह कि अस्पृश्य जैन मन्दिरोंमें जा सकते हैं या नहीं।" प्रथम प्रश्न ऐतिहासिक है और दूसरा सांस्कृतिक । ___ कुछ जैनोंका ख्याल है कि संस्कारसे 'जैन हिन्द नहीं हैं' इस बातके स्वीकार करा लेने पर ‘कथित अस्पृश्य जैन मन्दिरोंमें जा सकते है या नहीं? इस प्रश्न : अलगसे निर्णय कराने की आवश्यकता नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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