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________________ तृतीय खण्ड : ९३ श्री जिनेन्द्र देवसे हम आपके आरोग्यराय, दीर्घ एवं यशस्वी जीवनकी मंगलकामना करते हैं । आप संपूर्ण जैन समाजकी अमूल्य निधि हैं । समाजको आपके प्रति गर्व है । आशा है आप इसी तरह समाजका नेतृत्व करते रहेंगे । समाजकी विभूति • श्री सेठ डालचन्द जैन, सागर वास्तव में यदि पूछा जाय तो वही व्यक्ति धन्य हैं और महानता का द्योतक हैं, जोकि अपने जीवनके कर्त्तव्य मार्गमें अपनी समाज, राष्ट्र एवं धर्मके प्रति पूर्ण आस्थावान्, लगनशीलता और कर्मठताका प्रतीक बन कर अपने दायित्वों का निष्ठापूर्वक वहन करता हुआ ऐसे अनुकरणीय कार्योंकी अमिट छाप समाजमें प्रस्तुत कर देता है, जो जीवन पर्यन्त ही नहीं, बल्कि इतिहास भी सदैव उसके कार्योंके प्रति श्रद्धावनत रहा करता है । ऐसे ही मानव पुंजोंकी श्रृंखलामें आदरणीय साहित्य-मनीषी, तत्त्व रसिक, ग्रंथ रचना एवं टीकाकार सिद्धांताचार्य पंडित फूलचंद्रजी शास्त्रीका आदरणीय स्थान है । 'व्यक्ति जन्मसे नहीं कर्मसे महान् बनता है ।' इसके साथ ही यह यह बात भी शत प्रतिशत सत्य है, कि 'व्यक्तिके गुणोंकी सर्वत्र पूजा हुआ करती है ।' गुणोंके कारण व्यक्ति समाज और संप्रदायवादके दायरेसे ऊपर उठकर सर्वप्रिय और लोकप्रिय बन जाता है । श्री जिनेन्द्रदेवसे प्रार्थना है कि वह सरस्वतीके इन वरद पुत्रको दीर्घायु एवं स्वस्थ्य जीवन प्रदान करें; ताकि यह समाजका नेतृत्व करते रहें । जैन सिद्धान्तके मर्मज्ञ • पं० भँवरलाल न्यायतीर्थ, जयपुर सिद्धान्ताचार्य पंडित फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री प्राचीन पीढ़ीके उन विद्वानोंमेंसे हैं जिसने अपना सारा जीवन माँ सरस्वती की उपासना में ही समर्पित किया हुआ है और आज भी इस वृद्धावस्था में उसी धुन में संलग्न हैं । साहित्य सेवाका मानो व्रत ही ले रखा है । आज भी इस वृद्धावस्थामें साहित्य सेवामें ही आप लगे हुए हैं। जब कभी आप मुझे पत्र लिखते हैं तो किसी ग्रन्थके बारेमें ही होता है। से अमुक ग्रन्थ भिजवाइये - सम्पादन टीकाके लिए अपेक्षित है । जितना काम हो है । आपसे करीब चालीस वर्षोंसे पत्र व्यवहार होता रहता है । और जब कभी जयपुर अमुक ग्रन्थ भण्डार जाय जीवनकी उपयोगिता किसी धार्मिक उत्सव या आपका सादा जीवन, सादा वेशभूषा -- खादी संगोष्ठी आदिमें मिलना होता है तो बड़े प्रेम पूर्वक मिलते हैं । का कोट खादी की टोपी पहने देखकर कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि एक विशिष्ट विद्वान् हमारे सामने हैं। आपको ज्ञानका कोई अभिमान नहीं । कहीं भी सैद्धान्तिक चर्चा हो, आप पहुँचते रहते हैं । इतनी लगन है जैन सिद्धान्तके प्रति । आप राष्ट्रीय विचारधाराके स्वतन्त्रता सेनानी हैं और कृष्ण मन्दिरकी यात्रा भी कर चुके हैं । अच्छे पत्रकार-लेखक हैं और समाज सुधारके हामी हैं । पुरानो पीढ़ी के शास्त्रकी गद्दी पर बैठकर प्रवचन करने बाले विद्वानोंमें आज इने गिने विद्वान् ही उपलब्ध हैं । पण्डितजी उनमें से ही हैं । पूज्य पंडितजी स्वस्थ दीर्घायु हों, साहित्य सेवामें संलग्न रहकर जैन सिद्धान्तकी प्रचार-प्रसार करते रहें - यही कामना है । आपका अभिनन्दन ग्रंथ नई पीढ़ीको अवश्य प्रेरणा प्रदान करेगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012004
Book TitleFulchandra Shastri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
PublisherSiddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi
Publication Year1985
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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