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३४ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
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हत्य तला पायवला लच्छीहर दल दलेहि निम्मविया किं जे सुपयावद्दणा लच्छी जंते सु संकमिया ॥ ४७ ॥ जेलि नह मुसीओ सुद्द सुत्तीओ रसुब्भव महीओ । अंग समुद्र सुतीरे केहिं न दिन स दिट्ठीहिं ॥ ४८ ॥
खंड पर खंड सुक्करं पाय कक्करूक्कर दक्खं नियह लक्ख... डुगुड़गुड़िये च कटु गुडियं ॥ ४९ ॥
खीरं मरूसखीरं पीऊस रसं कमंबु भरवि रसं महिं कहिं जो वाणी न संधुनिया ॥ ५० ॥
उज्जय विजय विहारो जेर्सि सका असजा धयराया । उत्तरगुण पयडीओ चडिया निय विसय ठाणेसु ॥ ५१ ॥ मुणिका गुडगुडया संजुडिया सारसीहरद्दसहस्सा । तरवरियाव सुहासा चककरा... कपायका ॥ ५२ ॥ दिट्ठविस न मोहो नय कोहो नेव ओग्भटो लोहो । नय काम जोह छोहो जहि विसेहोदए चरिभो ॥ ५३ ॥
जेसिं वयबल पभारप विवेय विनय सुदड भड़वाए अन्नाणं अन्नाणं भंगाणं पइदिणं पत्तं ॥ ५४ ॥
पइ गामं पड़ नगरं विहिया विहिणा महूसवा परमा । सत्थी काrय संघो गुण विहवेणं भरेऊण ॥ ५५ ॥ वाणि गुणो कथ्य गुणो बखान गुणोय जेसिमसरिष्ठो केसि विहाण मणे न च्छेश्य कारंभ जाओ ॥ ५६ ॥
सिरि गुजरत देसे मारव देसे सवायलक्खे य लाडे माडे से सिंधु सुरट्टाइ विसप्सु ॥ ५७ ॥
वज्र्जते तूर रखे गज्जते चारु भट्ट थट्टेय जेसिं विहार विसए कित्ती जाया भुवण भूसा ॥ ५८ ॥
परवाइ चक्कवालं विज्जा गुण गव्व पव्वयारूढं सं नमिकर्ण जेसिं मां पाए धूलिम् ॥ ५९ ॥
अहं गाऊणं सया समाराहणं कियं जेसिं संतो मुहत्त वंता अह अहियं हुंति गुणवंता ॥ ६० ॥
चड दिखि सासण भुवण करणाथं चउपयाणि रयाणि । उवज्ञाय तियं चयं वाणारिय पय महायरियं ॥ ६१ ॥ चिणया णमंत सीसा अडसीसा जेसि लद आसीसा संजम गुण राखीसा परिचत कसायकासीसा ॥ ६२ ॥
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