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खरतर गच्छके आचार्यों संबन्धी कतिपय अज्ञात ऐ० रचनाएँ : ३३ पढमं चिय भुवणहिओ उवझाओ पाढिमो सयल विज अह जिणपउम मुणिदो विणयपहो सोमकित्तीय ॥ ३१ ॥ गणि सोमपभो किंवी विसम पमाणागमाइ विज्जाओ जाणाविऊय जेहिं विबोहिमओ तेहिं कोनहि वा ॥ ३२॥ खं खं वेय चंद वरिसे आसाढे पढम पडिवइदिणेय सियवारे सुहलग्गे सिरिसंति जिणेसर विहारे ॥३३॥ जिणपउमसूरि पट्टे समग्गगुण जोग संगओ विहिलो अम्हेहिं गणनाहो सिरि जिणलद्धित्ति नामेण ॥ ३४ ॥ रयणायरोय विहुणा रविणा पओमायरो जहा सययं जेहिं समुग्गएहिं तह विहि संघो समुल्लसिओ ॥ ३५॥ उड़े कोसुंभ झया दिसि भत्ति सु कुंकुमत्थ वयहत्था भू कुंकुमरस सेया जेसि पयावस्स पसरेणं ॥ ३६ ॥ कित्ति कुसुमाण वुट्टी आसीस मिसेण सुयण संतुट्ठी मिच्छत्तरुई रुठ्ठी उट्ठी दिठ्ठी न केणावि ॥ ३७ ।। सन्नाण रयण दीवो जेसि विहि संघ मंगल पईवो। वय सिरिकर परिगहिओ तिकाल विसए परिप्पुरिओ ॥३८॥ काए कन्ने किच्चैकाविजुइकावि सुस्सईय सई कावि सोहग्ग लच्छी जेसिं गच्छाहिवच्च पए ॥ ३९॥ सिरिवीर तित्थ मूहे गुरु भारा धारा भारवटाभो अहवा दढयर थंभा गण पीढ परिट्ठिया जेहु ॥ ४० ॥ सुह सिहरिणि जस्स सिरे सह स्युइ मिहुण धम्ममिहुण कए उहओ किरहिंडोला कन्नलयाओ किया विहिणा ॥ ४५ ॥ पुग्न परमाणु घडिया जे सुमुहं संमुहं सुभवियाणं नयणाण मवि जिणाणुग सुहोह वुटिव तुट्टियरं ॥ ४२ ॥ नासा दंडस्सुवरि भाल यव वारणस्सकिं हिट्ठा मणि मउराथिणि पउरा जं नयणा संभुणा रइया ॥ ४३ ।। हंतुं तु राग दोसे कय तिहुयण कय सुगुण संपयासो सा विहिणा विहिया जेसिं सुपयंडा जाणु भुय दंडा ॥४४॥ भूय तोडखंधकुंभा कुंभालिय नाणहस्थिमल्लस्स मुणिवइ पुर मुह पासे मंगलकलसा किया विहिणा ॥४५॥ दट्टणसो वरिट्ठा सुयसारसमुन्दरं उरं गुरुयं ईसोलुयव्व मशं सुकिसंतेसिं न पयडीए ॥ ४६॥
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