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आज में राजनीतिज्ञ युद्ध को स्थायी शान्ति स्थापना के दोनों के साध्य समान हैं, केवल साधनों का ही अन्तर लिए प्रयास निरुसूति करने लगे हैं, और युद्ध विराम है, क्योंकि महावीर का अपरिग्रहवाद अहिंसामूलक को शान्ति स्थापना । उनकी नजर में युद्ध विजय से समाजवाद का जनक है, अहिंसा उसकी आत्मा है, बड़ी वीरता और युद्ध विराम से बड़ी शान्ति नहीं है। जिससे उसे अलग नहीं किया सकता । इस प्रकार यही सबसे बड़ा भ्रम है । यही सबसे बड़ा छल है, जो महावीर का अपरिग्रहवाद अहिंसामूलक समाजवाद राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ मानवता के साथ खेल रहे की स्थापना पर बल देता है, जो कि विचारधाराओं अर्थशास्त्रों के बल पर युद्ध क्षेत्र में निर्बल पर विजय के नाम पर विश्वशान्ति को उत्पन्न खतरे से मुक्ति का प्राप्त कर लेने में कौन-सी बहादुरी है, बहादुरी तो सर्वोत्तम हल है ।। हिंसक के सम्मुख भी निश्चल, निष्काम भाव से निडर महावीर ने अपने सारे दर्नन में विभिन्न सत्रों की होकर स्थिर रहने और बुराई तथा हिंसा का आत्मबल श्रखला में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण और नितान्त के द्वारा मुकाबला करने में है । इस प्रकार अहिंसा मौलिक सत्र दिया वह है उनका अनेकान्त दर्शन जो वीरों का अस्त्र है, आज मानव जाति को इसके पालने विभिन्न विचारधाराओं के समन्वय पर बल देता है। की नितान्त आवश्यकता है । हिंसा से निर्मिक शान्ति, इस दर्शन ने वैचारिक व्यापकता के द्वार खोल दिए. मरघट की ही शान्ति हो सकती है, किन्तु स्थायी शान्ति इस दृष्टि से यह सर्वाधिक प्रगतिशील विचार है जिसमें केवल अहिंसा के द्वारा ही संभव है ।
बस्तु को एकांगी स्वरूप से न देखकर विभिन्न दृष्टियों अहिंसा के अतिरिक्त जिन अन्य बातों पर महावीर के समन्वय करने को कहा गया है। अनेकान्त दर्शन ने सर्वाधिक बल दिया वह है समतावाद और अपरि- हठवादिता, एकांगी दृष्टिकोण एवं दुराग्रह रूपी दोषों ग्रहवाद । उन्होंने कहा कि सभी जीव समान हैं, उनमें को समाप्त कर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने पर बल आत्मा का समान अस्तित्व है, अतः सभी के अस्तित्व देता है । आज इन दोषों के कारण भी विश्वशान्ति को को स्वीकारा जाना चाहिए। महावीर का समतावाद, प्रमुख खतरा है। राष्टों के मध्य परस्पर विश्वास का आज भी विश्व के कई क्षेत्रों में व्याप्त रंगभेद, वर्गभेद
अभाव है, उनकी तीतियों के क्रियान्वयन और राजजाति एवं वर्णभेद का सर्वोत्तम हल है । ये भेद आज
नीतिक विचारों एवं प्रणाली में एकांगी दृष्टिकोण भी विश्वशान्ति के मार्ग में बाधा और मानवता के
निहित होने से भी स्थायी विश्वशान्ति स्थापित नहीं माथे पर कलंक के रूप में बाधक आर्थिक हो पा रही है। कुछ शान्तिप्रिय देशों तथा राजनीतियों वैवम्व एवं शोषण प्रकृति से मुक्ति के लिये महावीर ने द्वारा प्रदत्त गुट निरपेक्षता के विचार के मल में अपरिग्रहवाद का सन्देश दिया। उन्होंने वस्तु या धन हमें अनेकान्त दर्शन ही सरलक्षित होता है । से लगाव या ममत्व को अपरिग्रह कह इससे विमुक्त
इस प्रकार विश्वशान्ति की स्थापना परिप्रेक्ष्य रहने पर बल दिया और कहा कि आवश्यकता से में जब भी हम तीर्थकर महावीर के दर्शन पर विचार संग्रह मत करो, साथ ही अपनी आवश्कताओं को भी करते हैं तो आज भी वह उतना ही नूतन, मौलिक,
नाकानि एवं शाश्वत प्रतीत होता है । उनके हश्चात पच्चीस
शताब्दियां बीत जाने पर भी अहिंसा, समता, अपरिकी उन्नायक मार्क्सवाद और समाजवादी विचार
ग्रह और अनेकान्त के सिद्धांत स्थायी विश्व शाति की धाराओं के परिप्रेक्ष्य में यदि हम महावीर के अपरिग्रह
स्थापना हेतु उतने ही शाश्वत और कारगल हैं जितने वाद पर दृष्टिपात करें तो निश्चित रूप से वह इनसे बे उनके काल में थे आज भी उनमें स्था भी कहीं अधिक प्रगतिशील सिद्धांत प्रतीत होता है, की स्थापना का मार्ग निहित है।
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