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विश्व शान्ति के सन्दर्भ में तीर्थंकर महावीर का सन्देश
प्रजातन्त्र की रक्षा और स्थायी शान्ति की स्थापना के नाम पर लड़े गए द्वितीय विश्वयुद्ध के अन्तिम दौर में अमरीका द्वारा नागाशाकी और हीरोशिमा पर बमवर्षा के माध्यम से
युद्ध विजय का मार्ग प्रशस्त हो जाने ० यू० एन० वाच्छावत
के बाद से विश्व की प्रमुख शक्तियों में अणु आयुधों की ऐसी होड़ मची,
जिसने आज उन्हें प्रगति के उस सोपान सम्पूर्ण विश्व आज अशान्ति और असुरक्षा के गम्भीर दौर से गुजर तक पहुंचा दिया है, जहाँ से कुछ क्षण रहा है । सम्पूर्ण मानव समाज युद्ध की विभीषिका से भयग्रस्त है। विकास में ही सम्पूर्ण मानव सभ्यता को समाप्त के कालचक्र में मानव सभ्यता को भौतिक प्रगति के क्षेत्र में उल्लेखनीय किया जा सकता है । परिणामस्वरूप उपलब्धियाँ प्राप्त कर जहाँ एक ओर भौतिक दृष्टि से सशक्त एवं विकास- विश्व के प्रमुख शक्तिशाली देश दो शील बनाया है वहाँ दूसरी ओर मानवीय पक्ष की दृष्टि से वह नित्य खेमों में वेट गए, और कई छोटे और प्रति निर्बल होती जा रही है। भौतिक प्रगति की दौड़ में अंधी वर्तमान अशक्त देश असुरक्षा के भय से उनके सभ्यता का रुख मानव कल्याण से हटकर शक्ति उपार्जन की ओर हो साथ हो लिये। जाने के परिणामस्वरूप मानवीय आधारों पर भोतिक प्रगति की स्थापना की दिशा से हटकर, माननीय समाज व्यवस्था भौतिक आधारों पर
विश्वविजय की दुष्कल्पना की निर्भर होती गई। भौतिक प्रगति के नित नए कीर्तिमानों की स्थापना
अंधी दीड़ में इन विश्व शक्तियों ने ऐसे की होड़ में मानव सभ्यता जितना अधिक भौतिकवादी जंजाल में फंसती
अस्त्र-शस्त्र निर्माण कर लिये हैं,
जिससे जितना विपक्षी के अस्तित्व को रही, मानवीय मूल्य उतने ही अधिक नष्ट होते रहे।
भय है, उनके स्वयं के आस्तित्व को - यों तो इतिहास के पृष्ठ सत्ता लिप्सा के कारण होनेवाले युद्धों, नर- भी उससे कम भय नहीं हैं । संहार और रक्तपात जैसी हिंसात्मक घटनाओं से भरे पड़े हैं। घणा, आज यह स्पष्ट है कि यदि देष और सत्तालिप्सा के कारण समय-समय पर तथाकथित योद्धाओं तीसरा विश्वयुद्ध हआ तो उसमें इन एवं राजनेताओं द्वारा राजनीतिक एवं धार्मिक कारणों से "शान्ति के संहारक आयुधों का प्रयोग निश्चित है, लिये युद्ध" की दुहाई देकर जन शक्ति को युद्ध की विभीषिका में झोंक- जो सम्पूर्ण मानव सभ्यता को नष्ट कर कर मानवीय मल्यों का गला घोंटा जाता रहा है। इसी शताब्दी में देगा। परिणामस्वरूप वड़ी शक्तियाँ पिछले दो विश्वयुद्ध भी इसी आधार पर लड़े गए, परन्तु इन सबके भी विश्वयूद्ध से बचने को तत्पर तो बावजद भी मानव सभ्यता के अस्तित्व को इतना बड़ा खतरा कभी नहीं रहीं, पर उनके मध्य व्याप्त प र रहा जितना आज है।
स्वार्थ पोषण, सत्ता लिप्सा तथा
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