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बनीं, उन्हें क्रियान्वित करने के लिए निजी एवं सामू- दिया । राजपुत्र ने अपने परिचारक से पूछा, "यह क्या हिक प्रयास भी हुए। कुछ योजनाएं पूरी हुई, कुछ है ? जाओ पता लगाकर आओ।" परिचारक गया, थोड़ी अधूरी रह गई, शायद भविष्य में पूरी हों। लेकिन देर में लौटकर उसने बताया, 'मालिक अपने दास को कुल मिलाकर मुझे ऐसा लगता है कि इतनी भावना पीट रहा है।" और साधना के बाद भी राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय
"क्यों ?" महावीर ने आकुल होकर पूछा। जीवन पर महावीर और उनके सिद्धान्तों का जो प्रभाव पड़ना चाहिए, वह पड़ा दिखाई नहीं देता।
"इसलिए कि वह खरीदा हुआ है।"
इसका मुख्य कारण यह है कि महावीर की भूमिका क्या हमारे शासन ने यह अधिकार दे रखा है कि के बाह्यरूप पर तो बल दिया गया, लेकिन उनके एक आदमी दूसरे की खरीद ले ?" आन्तरिक रूप को गहराई से समझने और पकड़ने की कोशिश नहीं की गई। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आज
“जी हो, खरीदने का ही नहीं, बल्कि दास को युग की धारा अत्यन्त उहम गति से भौतिकता की मारने तक का भी अधिकार शासन ने दे रखा है। ओर प्रवाहित हो रही है और उसकी दिशा को बदलना आसान नहीं है, फिर भी यदि महावीर के सिद्धान्तों के
__ महावीर का सम्वेदनशील हृदय इस घटना से
मर्माहत हो उठा । ऐसा शासन किस काम का, जो एक स्थूल प्रतिपादन के साथ-साथ उनकी भूमिका को समझ
व्यक्ति को दुसरे को खरीदने और मारने का अधिकार कर उसका वैयक्तिक एवं सामूहिक जीवन में प्रवेश कराने के लिए प्रयत्न किये गये होते तो आज स्थिति कुछ और ही होती।
हमारा इतिहास बताता है कि अरिष्टनेमि पशुओं - आइये, आज के बदले संदर्भो में हम महावीर के
का चीत्कार सुनकर अहिंसा के मार्ग के पथिक' बन गये उपदेशों की उपयोगिता को देखने और समझने का
थे, पार्श्वनाथ ने जलती लकड़ी में सांपों के एक जोड़े प्रयत्न करें।
को अर्द्धदग्ध देखकर जीवन की नई दिशा में मोड़ दिया था, बुद्ध संसार से रोग, जरा और मृत्यु की मुक्ति का
मार्ग खोजने के लिए गृह-त्याग कर साधना में लीन हो । पाठक जानते हैं कि महावीर राज-घराने में जन्मे
गये थे। महावीर के मन में भी इस घटना से राजथे। उनके चारों ओर विपुल सम्पदा थी, अपार वैभव
सत्ता के प्रति विद्रोह की भावना जागृत हुई और उनका था, अतुलित सत्ता थी; लेकिन धन-सम्पदा अथवा सत्ता
मन ऐसा जीवन जीने के लिए आतुर हो उठा, जिसमें के द्वारा उन्होंने समाज का भला करने की बात क्यों
न कोई किसी का स्वामी हो, न कोई किसी का दास नहीं सोची ?
हो, बल्कि जिसमें मानवीय मूल्यों की प्रधानता हो। इस प्रश्न का उत्तर उनके जीवन की एक घटना ।
धन-सम्पदा में बचपन से ही उन्हें रस नहीं था, इस देती है।
छोटी-सी घटना ने उन्हें सत्ता से भी विमुख कर दिया।
उनके हृदय में स्वतंत्रता की लौ प्रदीप्त हो उठी। - एक दिन महावीर कहीं जा रहे थे। अचानक मुनि नथमल जी 'श्रमण महावीर' में लिखते हैं, “वह लौ बस्ती के एक भवन से उन्हें किसी का क्रन्दन सुनायी इतनी उद्दम थी कि, ऐश्वर्य की हवा की प्रखर झांकी
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