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कलात्मक गतिविधियां समाप्त हो गई। विक्रमादित्य उरवा बुरा स्थान नहीं है। यह बन्द स्थान है। का परिबार अब हुमायू' के अधीन हो गया। उसकी मूर्तियां ही इस स्थान का सबसे बड़ा देष है । मैंने उनके सदभावना पाने के उद्देश्य से उन्होंने तँवरों द्वारा मांडू नष्ट करने का आदेश दे दिया। . के सुल्तानों पर प्राप्त विजय की निशानी रत्नों का सरताज (कोहिनूर) नामक विश्वप्रसिद्ध हीरा हुमायू
उरवा से निकलकर हम पुनः किले में प्रविष्ट हुए। को भेंट कर दिया।
हमने सुल्तानी पुल की खिड़की से सैर की। यह
काफिरों के समय से अभी तक बन्द रही होगी। हम लोग मुगलों का पूर्ण अधिकार हो जाने के बाद जब सायंकाल की नमाज के समय रहीमदाद के वगीचे बादशाह बाबर स्वयं ग्वालियर आया तब इस दुर्ग का में पहुंचे। वहीं ठहर कर हम सो गए। हम लोगों ने अवलोकन करते समय सन् 1527 में उसकी दृष्टि इस बगीचे से प्रस्थान करके ग्वालियर के मन्दिरों की दुर्ग पर स्थित जैन मूर्तियों पर भी पड़ी।
सैर की। कुछ मन्दिरों में दो-दो और कुछ में तीन-तीन
मंजिलें थीं। प्रत्येक मंजिल प्राचीन प्रथानुसार नीचीबाबर ने "बाबरनामा" में अपनी ग्वालियर यात्रा
नीची थीं। उनके पत्थर के स्तम्भ के नीचे की चौकी पर (28 सितम्बर 1528 ई.) का वर्णन करते हुए
पत्थर की मूर्तियां रखी थीं । कुछ मन्दिर मदरसों के लिखा है:-42
समान थे। उनमें दालान तथा ऊचे गुम्बज एवं मदरसों इस बाहरी दीवार के नीचे तथा बाहर एक बहत बडी के कमरों के समान कमरे थे। प्रत्येक कमरे के ऊपर झील है। यह (कभी-कभी) इतनी सूख जाती है कि पत्थ
पत्थर के तराशे हए सकरे गूम्बज थे। नीचे की कोठरियों झील नही रह पाती। इसमें से आव दुन्द जल संग्रह) में चट्टान से तराशी हुई मूर्तियां थीं, ज्ञात होता है कि में जल जाता है। उरवा के भीतर दो अन्य झीलें हैं। ये आजन हुमायू' के घेरे के समय अपूज्य और भष्ट कर किले के निवासी इनके जल को सबसे अधिक उत्तम दिये गए थे; और फिर बावर के वंशजों के अधिकारियों समझते हैं।
ने इन्हें तुड़वा दिया।
उरवा के तीन ओर ठोस चट्टानें हैं। इनका रंग एक जनश्रुति के अनुसार कहा जाता है कि एक वयाना की ठोस चट्टानों के समान नहीं है, अपितु रात्रि को वह और उसके सैनिक इतने विशाल आकार फीका-फीका है। इन दिशाओं में लोगों ने पत्थर की दिगम्बर जैन मतियों को देखकर चकित एवं भयकी मूर्तियां कटवा रखी हैं। वे छोटी-बड़ी सभी प्रकार भीत हो गये । उसके क्रोध की सीमा न रही। वह जैन की हैं। एक बहुत बड़ी मूर्ति, जो कि दक्षिण की ओर धर्म से इतना क्र द्ध हुआ कि अगले दिवस ही उसने है, सम्भवतः 20 कारी ऊंची होगी। यह मूर्तियां पूर्णतः अपनी सेना को दुर्ग पर स्थित सभी मूर्तियों को समल नग्न हैं और गुप्त अंग भी ढके हुए नहीं हैं। उरवा की रूप से नष्ट कर देने का आदेश प्रदान किया परन्तु यह इन दोनों बड़ी झीलों के चारों ओर 20-30 कूए भी कोई आसान कार्य नहीं था अतः मुगल सैनिक प्रतिखुदे हैं । इनके जल से तरकारियां, फूल तथा वृक्ष माओं को समूल रूप से नष्ट न कर सके, उन्हें खण्डित लगाए जाते हैं।
कर गये। और इस प्रकार कुशल कारीगरों की 33
42. ग्वालियर के तोमर-श्री हरिहर निवास द्विवेदी, पृ० 358
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