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(एक पत्थर की बावड़ी, पर स्थित, गुहा मन्दिर; जैन मूर्ति समूह )
जैन व्यापारी ग्वालियर आते रहे । उनमें से अनेक यहाँ बस गए और लगभग सभी ने गोपाचल के किसी न-किसी कोने में गुहामन्दिर बनवाए तथा जैन ग्रन्थों की रचना की प्रेरणा दी और अनेक प्राचीन जैन ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ कराई। इन समस्त कार्यों के पीछे भट्टारक यशः कीर्ति की प्रेरणा थी ।
रघू के ग्रन्थों से तथा इस समम के उपलब्ध लगभग 40 मूर्तिलेखों से डूंगरेन्द्रसिंह और कीर्तिसिंह के समय में ग्वालियर में हुए जैन धर्म के विकास का बहुत स्पष्ट और विस्तृत इतिहास लिखा जा सकता है। दर्जनों संबाधिपतियों, तथा सैकड़ों श्रावकों का पूर्ण विवरण सजीव रूप में ज्ञात हो जाता है। किसने क्या कराया,
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इसका भी पूरा विवरण प्राप्त हो जाता है । वह समस्त विवरण यहाँ देने से प्रसंग बहुत बढ़ जाएगा। यहाँ एकदो उदाहरण देना ही पर्याप्त है ।
रघू ने "सम्मइजिन चरिउ" में हिसार निवासी एक अग्रवाल जैन व्यापारी का बहुत विस्तृत विवरण दिया है । साहु नरपति का पुत्र बील्हा फीरोजशाह तुगलक द्वारा सम्मानित व्यापारी था । उसी के वंश में संघाधिपति सहजपाल हुआ, जिसने गिरनार की यात्रा का संघ चलाया था और उसका समस्त व्यय भार वहन किया था । सहजपाल का पुत्र साहु सहदेव भी संघाधिपति था । उसका छोटा भाई तोसड़ था । तोसड़ का पुत्र खेल्हा था । भट्टारक यशःकीर्ति का आशीर्वाद
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