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(सुहजना से प्राप्त प्राचीन जैन प्रतिमा) (श्री हरिहर निवासजी द्विवेदी के सौजन्य से)
प्रमाण आठवीं शती तक के प्राचीन उपलब्ध होते हैं। कच्छपघात राजाओं के काल में यहाँ जैन ग्यारहवीं शती में ग्वालियर दुर्ग (गोपाचल गढ़) के संस्कृति का प्रसार अवश्य ही कुछ कम हुआ था परन्तु ऊपर एक जैन मन्दिर उपलब्ध होने के पर्याप्त प्रमाण चौदहवीं-पन्द्रहवीं शती में तोमर राजाओं के काल में उपलब्ध हैं । दुर्ग के अतिरिक्त ग्वालियर नगर ग्वालियर में जैन संस्कृति का व्यापक एवं अभूतपूर्व के निकटवर्ती क्षेत्रों में भी अनेकों प्राचीन प्रतिमाएं प्रचार हुआ। तोमर काल में ग्वालियर में जैन धर्मावव अवशेष उपलब्ध होते हैं। इनमें तिघरा बांध के पास लम्बी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। इस काल में स्थित सौजना (सुहजना) ग्राम में प्राप्त प्राचीन जैन अनेकों जैन मन्दिरों का निर्माण हुआ, जो आज उपप्रतिमाएँ उल्लेखनीय हैं।
लब्ध नहीं हैं। ग्वालियर दुर्ग के चारों ओर निर्मित
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