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ग्वालियर एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में स्थित
= जैल सास्कृतिक 6.
डा० वी. वी० लाल
भारत की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक जैन ग्वालियर उत्तरी मध्यप्रदेश के प्राचीनतम क्षेत्रों में संस्कति, जिसे श्रमण संस्कृति भी कहा जाता है, की से एक है । ग्वालियर के निकट पवाया नाम के ग्राम व्यापकता उसकी एक प्रमुख विशेषता रही है। यों तो को वेदों में पद्मावती नामक ऐतिहासिक नगरी मानने सम्पूर्ण भारतवर्ष में जैन संस्कृति के प्रतीक स्वरूप
में अनेकों इतिहासकार एकमत हैं। यहाँ प्राप्त प्राचीन अनेकों तीर्थ, मन्दिर, मूर्तियां आदि अनेक प्रकार के पुरातत्वीय सामग्री से यह तथ्य बहुत कुछ पुष्ट होता
है। मुरैना जिले में सिहोनिया, दतिया जिले में स्वर्णास्मारक उपलब्ध होते हैं, परन्तु उत्तर भारत और
गिरी, शिवपुरी जिले के नरवर, गुना जिले में चंदेरी, मध्य भारत के बीच का क्षेत्र इस दृष्टि से और भी
तुमैन और झरकोन जैगर (बजरंग गढ़) तथा ग्वालियर अधिक सम्पन्न क्षेत्र है । ग्वालियर के निकटवर्ती क्षेत्र
के अमरौल व दुर्ग आदि स्थल भी प्राचीन ऐतिहासिक जैन पुरातत्व के वैभव से भरे पड़े हैं, विभिन्न अंचलों
महत्व व पुरातत्विक सम्पदा की दृष्टि से सम्पन्न क्षेत्र में यगयगीन जैन संस्कृति के अनेकों प्रतीकात्मक स्मारक हैं। इन सभी क्षेत्रों में जो कुछ भी प्राचीनतम पूरातत्विक उपलब्ध हैं। इसका एक प्रमुख कारण सम्भवतः यह अवशेष
अवशेष एवं अन्य सामग्री उपवब्ध हई है उसका बड़ा
अन्य मामी ure भी है कि विभिन्न जैन तीर्थ करों व साधुओं ने देश भर भाग जैन संस्कृति से सम्बन्धित है। इस प्रकार में पैदल विहार कर अपने धर्म का प्रचार किया और ग्वालियर और उसका निकटवर्ती सम्पूर्ण क्षेत्र जैन लोगों को अहिंसात्मक जीवन पद्धति अपनाने का उपदेश पुरातत्व की दृष्टि से अत्यधिक सम्पन्न क्षेत्र है तथापि दिया। जो क्षेत्र तीर्थ करों के विहार में प्रमुख रहे उनमें जैन संस्कृति के कुछ प्रमुखतम केन्द्रों के रूप में कुछ बिहार, उत्तरप्रदेश और उत्तरी मध्यप्रदेश के क्षेत्र क्षेत्रों का ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा ही महत्व है। प्रमुख हैं।
यहाँ ऐसे ही कुछ प्रमुख स्थलों की चर्चा की गई है।
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