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जहाँ तक प्रत्यक्ष दर्शन और ज्ञान का प्रश्न है, क्षण वस्तु है। इससे भी विलक्षण तथ्य है सुकमबद्धी उनकी सम्भाव्यता का प्राकृत ग्रंथों में आधुनिक काल साध्य (well-ordering theorem) गभित प्रक्रिया के लिए निषेध है। तब मति और श्रुत से परोक्ष का अस्तित्व, “कि सर्वधारा में 1, 2, 3, से प्रारस्भ दर्शन और ज्ञान का प्रकरण सम्मुख आता है। पुद्गल करते हए, समस्त संख्येय, असंख्येय तथा अनन्त राशियाँ द्रव्य विषयक दर्शन ज्ञान की उपलब्धि श्रत के सिवाय पार करते हए केवल ज्ञान राशि तक पहंचना।" इस मति से होती है। गति का आकार संदेशवाहक, साध्य को सिद्ध करने का आश्वासन जार्ज केण्टर ने पुदगलक क्रियाएँ हैं। संदेश बाहन काल पर आधारित दिया था। किन्तु यह साध्य अब कथंचित सिद्ध किया होने से सापेक्षता सिद्धान्त की आवश्यकता स्पष्ट है। जा सकता है। सापेक्षता सिद्धान्त में जब महत्तम प्रवेग की उपधारणा
अनन्तों के अल्प-बहुत्व स्थापित करने में केण्टर की जाती है, तो भौतिक विज्ञान के प्रारंभिक आधुनिक
और डेडिकेंड की ज्यामितीय विधियों में स्पष्ट अन्तर प्रयोगों की पुष्टि होती है। साथ ही अल्पतम क्रिया
है। जहाँ आज सरलरेखा अथवा व्यवहार काल की (action) के क्वाण्टम की उपधारणा से क्वांटम
अतीत-अनागत दिशायें किन्हीं भी दो बिन्दुओं के याँत्रिकी का आधार बनता है, जिसमें अनिश्चिति के
अन्तराल में अगण्य (non-denumerable) राशि की अनुबन्ध भी प्रयुक्त होते हैं । 35 आधुनिक सापेक्षता सिद्धान्त में जहाँ एक ओर महत्तम प्रवेग को उपधारित
मान्यता है, वहाँ प्राकृत ग्रंथों में बिन्दुओं की राशि की किया गया है, वहाँ उसे अल्पतम प्रवेग तथा अविभागी
सीमित (असंख्येय अथवा संख्येय) संख्या की मान्यता समय से अछता रखा गया है। क्वाण्टम यांत्रिकी में
है। 39 असंख्यात कालाणओं से लोकाकाश-द्रव्य की पदगल की दंतमय (तरंगात्मक एवं कणिकात्मक) अखडता पूणरूपण सम्माता ह। दशाओं तथा गति और स्थिति के सम्बन्ध में समाधान
इसी प्रकार कर्म-सिद्धान्त विषयक अनेक तथ्यों को नहीं मिलता है क्योंकि यह कन्स्ट्रक्टिव थ्योरी है, आधुनिक तथ्यों की तलना में रखते हए नवीन अंशदान सापेक्षता सिद्धान्त की भाँति प्रिंसीपल थ्योरी नहीं है।
का प्रयास करना होगा । ज्यामिति की अपेक्षा सिस्टम इन समस्याओं का समाधान जैन समय तथा मंद तम । तथा कर्म सिद्धान्त में बीजगणितीय दृष्टि विकसित की प्रवेग की अवधारणाएँ करता प्रतीत होता है ।
गयी है जो घटना-चक्र की जानकारी अत्यंत सहज ढंग
से देती है। इस आधार पर बीजगणितीय अध्ययन का प्राकृत ग्रंथों में अतीत काल समय राशि से अनागत
शोध-क्षेत्र लाभदायक सिद्ध होता प्रतीत होता है।" काल राशि अनन्तगुणी बतलाना गणित की एक विल
35. देखिये, 291 36. देखिये, वही। 37. देखिये, z lot, W. L., The Role of the Axiom of Choice in the Development of the
Abstract Theory of Sets, Library of Congress, Mic 57-2164, Columbia University
Thsis (1957) 38. देखिए 1 (इ)। 39. देखिये, Kalman, R. E. Introduction to the Algebriac Theory of Linear Dynamical
Systems, Lecture notes, vol. II, Springer Verlag, 1969.
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