SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामग्री शोध छात्रों हेतु शीघ्र ही छपाना अब अति इतिहास सम्बन्धी गणित ज्योतिष एवं कर्मगणित आवश्यक प्रतीत हो रहा है। सिद्धान्त की शोधजैन लौकिक गणित एवं ज्योतिष को (व्यावहा- इस लेख में हम मुख्यतः लोकोत्तर गणित-विज्ञान रिक) गणित रूप में महावीराचार्य, श्रीधराचार्य तथा शोध का विवरण प्रस्तुत करेंगे । लोकोत्तर गणितादि के राजादित्य ठक्कर फेरू ने विकसित किया । ज्योतिष के प्रमाण यूनान, भारत और चीन में बेबिलनीय स्रोत के गणित को विकसित करने में प्रमुख रूप से कालकाचार्य, कुछ अंश लेकर प्रकट हुए हैं, जिनमें रवानी लाने का हरिभद्र, चन्द्रलेख, महेन्द्र सूरी, लब्धचन्द्र गणि के श्रेय वर्द्धमान महावीरकालीन मुनि मंडल को है अंशदान भी उल्लेखनीय हैं। जिनके अंशदान पश्चिम और पूर्व के उच्च मस्तिप्कों के लिए प्रेरणा एवं कौतूहल की वस्तु बन गये । यह उपरोक्त लौकिक रूप लोकोत्तर गणित-ज्योतिष से निश्चत है कि महावीर पूर्व परम्पराओं की अभिलेखभिन्न रूप से विकसित हुआ प्रतीत होता है। विशेषकर बद्ध सामग्री मिश्र, चीन, बेबिलिन, सुमेरु आदि स्थलों कर्म-सिद्धान्त सम्बन्धी गणित को विकसित करने के पर जिस रूप में उपलब्ध है वह भारत में सिन्धु हड़प्पा लिए तिलोय पण्णत्ती' जैसे ग्रंथों में आधार निर्मित के अज्ञात रूप में दिखाई देती है, किन्तु उन सभी में किया गया है। षटखंडागम के प्रथम पाँच खंडों में वह शक्ति नहीं थी कि वे विश्व की महावीरकालीन भूमिका डाली गयी है तथा महाबन्ध ग्रंथों में बन्ध जागति की ज्योति में नये गणित का उदभव कर सकें। तत्त्व का निरूपण राशि सिद्धान्त के आश्रय से किया इसी हेतु इतिहास का यह पक्ष उभारना श्रेयस्कर गया है। पुनः कसाय पाहह' में उपशम और क्षपणा के होगा कि कर्म सिद्धान्त का निर्माण करने में जिस गणित गणितीय रूप का निखार है। इन ग्रथों के सार विद्या की आवश्यकता हुई वह लोकोपकारी प्रवत्ति को रूप एवं टीका रूप ग्रथों में तथा इतर श्वेताम्वर लेकर हुई तथा उसे उन्नत करने में विश्व के प्रत्येक कार्यादि ग्रंथों में गणित विज्ञान की सामग्री इतिहास भाग में विभिन्न गणित की शाखाएँ प्रस्फुटित होती चली तथा प्रयोग एवं विश्लेषण शोध कार्य हेतु अद्वितीय है। गयीं। अलौकिक प्रेरणा का स्रोत भारत, यूनान तथा 2. गोम्मटसार, लब्धिसार एवं क्षपणासार, (वृ. तीन टीकाओं सहित), गांधी हरिभाई देवकरण ग्रंथमाला, कलकत्ता, 1919। इनमें पं टोडरमल कृतं सम्यक़ज्ञान चन्द्रिका टीका है जिसमें अर्थ संदृष्टि अधिकार अलग से दिये गये हैं। 3. देखिये, नेमिचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्योतिष, ज्ञानपीठ, वाराणसी, 1970 पृ. 125-160 । 4. तिलोय पण्णत्ती भाग 1 (1943), तथा भाग 2 (1952), शोलापुर । 5. षट्खण्डागम, (धवल टीका स.) भाग 1-16, डा. हीरालाल आदि, (अमरावती विदिशा 1939 1959) 6. महाबंध, भाग 1-7, ज्ञानपीठ-काशी (पं. सु. चं. दिवाकर एवं पं. फू. चं. सिद्धान्तशास्त्री द्वारा सम्पादित), 1947-:958 7. कसायपाहुड-सूत्र और चूणि अनुवादादि, पं. हीरालाल सि. शा. कलकत्ता-1955 । माथ ही, कसाय पाहुड (जयधवल टीका), मथुरा 1944 आदि । 8. देखिये, B. L. Vander Waerden, Science Awakening, Holland. 19451 २८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy