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________________ जैन-टीकाकार काव्यालङ्कार के अन्य जैन-टीकाकार आशाधर हैं। अनेक जैन-आचार्यों ने काव्यशास्त्र के उत्कृष्ट इन्होंने अपने पिता का नाम सल्लक्षण और पुत्र का ग्रन्थों पर टीकाओं की रचना की है। नाम छाहड बतलाया है। इन्होंने टीका की रचना 1239.43 ई. में की। इनकी अन्य रचनाएँ हैं-अमरवादिसिंह ने दण्डी के काव्यादर्श की टीका की 122 कोश की टीका, वाग्भट-कृत अष्टाङ्गहृदय की टीका, रूद्रट के काव्यालङ्कार के कई जैन-टीकाकार हुए त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र, रत्नत्रयविधानशास्त्र आदि ।24 हैं। नमिसाधू काव्यालङ्कार के प्रसिद्ध टीकाकार हैं। इनके गरू शीलभद्र थे। इन्होंने अपनी टीका की रचना काव्यप्रकाश की सबसे प्राचीन टीका माणिक्यचन्द्र1069 ई. में की कृत सङ्कत है। माणिक्यचन्द्र सागरेन्दु के शिष्य थे। इन्होंने टीका की रचना 1159 ई. में की।25 माणिक्य__एवं रुद्रटकाव्यालंकृतिटिप्पणकविरचनात् पुण्यम् । चन्द्र गुर्जरदेश के निवासी थे । इनकी टीका में किसी - यदवापि मया तस्मान्मनः परोपकृति रति भूयात् ।। टीका या टीकाकार के नाम का उल्लेख नहीं मिलता। थारापद्रपुरीयगच्छतिलक: पाण्डित्यसीमाभवत् - अभिधावृत्तिमातृकाकार मुकुल और सरस्वतीकण्ठाभरणसूरिभू रिगुणकमन्दिरमिह श्रीशालिभद्राभिधः ।। कार भोजराज का उल्लेख मिलता है ।26 तत्पादाम्बुजषट्पदेन नमिना सङ क्षेपसम्क्षिणः । सो मुग्धधियोऽधिकृत्य रचितं सटिप्पणं लहवदः ।। गणरत्नगणि ने काव्यप्रकाश की सारदीपिका नामक पञ्चविंशतिसंयुक्तरेकादशसमाशतैः । टीका की रचना की तथा भानुचन्द्र-सिद्धचन्द्र ने काव्यविक्रमात समतिक्रान्तः प्रावषीदं समथितम ।।23 प्रकाशविकृति का प्रणयन किया । 21.. 22. अलङ्कारमहोदधि की प्रस्तावना । 23. काव्यालंकार की नमिसाधु-कृत टीका के अन्तिम श्लोक। 24. काणे, संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास (मोतीलाल सं., 1966 ई.), पृ. 197.98 और अलङ्कारमहोदधि __ की प्रस्तावना। 25. गणानपेक्षिगी यस्मिन्नर्थालङ्कारतत्परा । प्रौढापि जायते बुद्धिः सङ्केतः सोऽयमद्भुतः ॥1॥ मदमदनतुषारक्षेपपूषाबिभूषा जिनवदनसरोजावासिवागीश्वरीया । द्य मुखमरिवलतर्कग्रन्थपङ्कहाणां तदनु समजनि श्रीसागरेन्दुर्मुनीन्द्रः ॥10॥ माणिक्यचन्द्राचार्येण तदध्रिकमलालिना । काव्यप्रकाशसङ्केतः स्वान्योपकृतये कृतः ।।11।। रसवक्त्रग्रहाधीशवत्सरे (संवत् 1216) मासि माधवे। काव्ये काव्यप्रकाशस्य सङ्केतोऽयं समर्थितः ॥12॥ काव्य प्रकाश (झलकीकर की टीका) की प्रस्तावना के प. 21-22 पर मङ्कत के श्लोक उद्धत । । 26. वही, पृ. 21। 27. अलङ्कारमहोदधि की प्रस्तावना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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