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ओई तरें बैठी ननद भोजाई कर रही रावन की बात । कर उससे रावण का चित्र अंकित कराती है और इस जोन खना भौजी तुमें हर लेगव हमें उरेइ बताव। चित्र में प्रविष्ट हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप र वन उरे हों जबई बारी ननदी घर में खबर न होय। सीता प्रयास करने के बाद भी उस चित्र को मिटा जो सुन पाहें बीरन तुम्हारे घर में देंय निकार। नहीं पाती है, और अंततः हताश होकर पलंग के नीचे राम की सौगंध लखन की सौगंध दसरथ लाख दुहाई। उसे छिपा देती है । तदुपरांत राम के इस पलंग पर हमारी सौगंध खाओ बारी ननदी तुमको कहा घट जाई। लेट जाने पर उनको तेज बुखार हो आता है । जब अपनी सौगध खात हों भौजी, सिजिया पावन देऊ। उन्हें उस चित्र का पता चलता है तो वे लक्ष्मण को सुरहन गऊ के गोबर मगाओं वैया मिटिया देव लिपाई। सीता को वन में ले जाकर मार डालने का आदेश देते हाथ बनाये, पांव बनाये और बत्तीसई दांत । हैं। ऊपर को मस्तक लिखन नहि पाओ, आ गए राजाराम।
- श्यामदेश की रचना 'राम कियेन' में अदुल नामक ल्याव ने बैया पिछौरिया लिखना देंय लुकाय ।
शूर्पणखा की पुत्री सीता से रावण का चित्र अंकित जैन रावण चित्र-कथा का विदेशी रामकाव्य पर प्रभाव :
करवाती है और तत्पश्चात इसी चित्र में प्रवेश कर
जाती है जिससे सीता उसे मिटा नहीं पाती है। जावा के 'सरत काण्ड' में कैकयी स्वतः सीता के
श्याम के उत्तर पूर्वीय प्रांतों के लाओ भाषा में पंखे पर रावण का चित्र अंकित करती है और सुषुप्ता
सोलहवीं शताब्दी में 'राम जातक' की रचना हुई थी वस्था में लीन सीता के पर्यक पर रख देती है। हिकायत
जिसमें भी रावणचित्र के कारण सीता-त्याग होता है। सेरी राम' में कीकवी देवी भरत-शत्रुधन की सहोदरी है। सीता ने कीकवी देवी के आग्रह के कारण पंखे पर
लाओस के 'ब्रह्मचक्र' या 'पोम्पका' में शुर्पणखाँ रावण का चित्र खींच दिया। कीकवी ने उसे सीता के
स्वतः छदमवेश में सीता के पास आकर उनसे चित्र वक्षस्थल पर रख दिया और यह आक्षेप किया कि सोने
बनवा लेती है। के पूर्व सीता ने उस चित्र का चुम्बन किया था। राम ने कीकवी पर विश्वास कर लिया।
थाईलैण्ड की 'थाई रामायण' में भी इसी चित्र की
पर्याप्त चर्चा है। हिन्देसिया के 'हिकायत महाराज रावण' में यह वृत्तांत आया है कि रावण वध के उपरान्त र म को सिंहली रामकथा में उमा सीता के पास आकर लंका में रहते सात माह हो गये । रावण की पुत्री उनसे केले के पत्ते पर रावण का चित्र अंकित करवाती अपने पिता का चित्र सोती सीता की छाती पर रख है। अकस्मात राम के आगमन पर सीता इस चित्र देती है। सीता निद्रावस्था में उस चित्र का चुम्बन को पलंग के नीचे फक देती है। राम उस पलंग पर करती है, उसी क्षण राम उनके पास आते हैं और उस बैठ जाते हैं और पलंग कांपने लगता है। कारण विदित दृश्य को देखकर राम आग बबूला हो जाते हैं। होने पर राम अत्यन्त ऋद्ध हो जाते हैं ।
हिन्दचीन अर्थात रुमेर-वाङ्मय की सर्वाधिक रावण के चित्र का मूल उत्स जैन-साहित्य है सशक्त कृति 'रामकेति' (सत्रहवीं शताब्दी) है। इसके जिसने विदेशों में जाकर बड़ा उग्र तथा विशिष्ट रूप पचहत्तरवें सर्ग में अतुलय राक्षसी सीता की सखी बन- धारण कर लिया है।
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