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किन्तु सीता कहीं नहीं मिल पायी। राम ने यह विचार परन्तु उन्हें न पाकर यह समझ लिया कि वे किसी करके कि सीता किसी हिंसक पशु द्वारा समाप्त हो हिंसक जानवर का ग्रास बन गई हैं। चुकी है, अतएव, उन्होंने परावर्तित होकर सीता का
हेमचन्द्र के 'जैन रामायण' (द्वादश शताब्दी) में श्राद्ध किया।
भी यही गाथा है। नागरिकों ने भी सीता के लोकाप(ख) धोबी का आख्यान :
वाद की चर्चा की जिसे राम ने ठीक पाया। जैन-राम-साहित्य में इसकी चर्चा नहीं मिलती। देवविजयगणि के 'जैन रामायण' (सन् 159)
में नारियाँ राम से शिकायत करती हैं कि सीता (ग) रावण का चित्र :
रावण के चरणों की पूजा-अर्चना करती हैइस वृत्तांत को प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम एवं स्वामिन् एषा सीता रावण मोहिता रावणांही प्राचीनतम श्रेय जैन-राम-साहित्य को है।
भूमौ लिखित्वा पुष्पादिभि: पजयति ।। हरिभद्र सूरि के (अष्टम शताब्दी) उपदेश पद में जैन रावण-चित्र-कथा का भारतीय रामायणों पर प्रभाव : सीता द्वारा रावण के चरणों के चित्र निर्मित करने का जैन राम-साहित्य में आयी, सीता द्वारा रावण के सत्र मिलता है। टीकाकार मुनिच्चन्द्र . सूरि (द्वादश चित्र के निर्माण की घटना का भारतीय रामायणों पर शताब्दी) के कथानानुसार सीता ने अपनी ईर्ष्यालु सपत्नी व्यापक प्रभाव पड़ता दिखलायी देता है। के प्रोत्साहन से रावण के पैरों का चित्र बनाया था। इस पर सपत्नी ने राम को यह चित्र दिखला दिया
बंगाल में कृतिवास ओझा द्वारा लिखित रामकथा दिया और उन्होंने सीता का त्याग कर दिया।
'कृतिवास रामायण' या 'श्रीराम पांचाली' (पन्द्रहवीं
शताब्दी का अंत) में सखियों से प्रेरित होकर सीता भद्रेश्वर की 'कहावली' (एकादश शताब्दी) में रावण का चित्र खींचती है। यह आख्यान आया है कि सीता के गर्भवती हो जाने
सिक्खों के दशमेश गुरु गोविन्दसिंह ने 'रामावतार पर ईर्ष्यालु तथा द्वषमयी सपत्नियों के आग्रह पर सीता ने रावण के पैरों का चित्र निमित किया जिसे
कथा' या गोविन्द 'रामायण' (सन् 1668) में रावणउन्होंने सीता द्वारा रावण के स्मरण के प्रमाण स्वरूप
चित्र के कारण राम के सीता पर संदेह होने का वृत्तांत
मिलता है। राम के समक्ष उपस्थित कर दिया । राम ने इसकी उपेक्षा करदी । सौतों ने रावण चित्र का किस्सा संस्कृत की 'आनन्द रामायण' (पन्द्रहवीं शताब्दी) दासियों के द्वारा जनता में फैला दिया। तत्पश्चात के तृतीय सर्ग में कैकयी के आग्रह पर सीता रावण के राम गुप्त वेष धारण कर नगरोद्यान में गये जहाँ सिर्फ अंगूठे का चित्र बनाती है जिसे कैकयी परा उन्होंने अपनी इस हेतु निंदा सुनी । गुप्तचरों ने भी करती है, और राम को बुलाकर नारी-चरित्र की लोकापवाद की चर्चा की । राम का निर्देश पाकर आलोचना करती है-- कृतांतवदन तीर्थयात्रा के बहाने सीता को वन में छोड़ यत्र-यत्र मनोलग्नं स्मर्यते हदि तत्सदा । आया। उसके बाद राम ने लक्ष्मण एवं अन्य विद्या- स्त्रियाश्च चरित्र को वेत्ति शिवाद्या मोहिता: धरों के साथ विमान में चढ़कर सीतान्वेषण किया स्त्रिया ॥
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